करनाल : मंगल सेन ऑडिटोरियम में गीता जयंती के उपलक्ष्य में आयोजित विशेष कार्यक्रम में हजारों स्कूली छात्र-छात्राओं ने एक साथ गीता के श्लोकों का पाठ कर अद्भुत आध्यात्मिक और सांस्कृतिक वातावरण बनाया। मंच से गीता के विभिन्न अध्यायों के श्लोकों का उच्चारण कराते हुए बच्चों को धर्म, कर्तव्य और कर्मयोग का संदेश समझाया गया, जिसके साथ हॉल श्रीकृष्ण और अर्जुन के संवादों की गूंज से भर उठा।
कार्यक्रम के दौरान मंच से गीता के प्रसिद्ध श्लोकों का पाठ किया गया और बच्चों ने एक स्वर में दोहराकर उन्हें याद करने का प्रयास किया। अंत में सूत्र रूप में संदेश दिया गया कि “कर्म करना ही है, फल की चिंता किए बगैर हमें कर्म करना है” और जैसा कर्म होगा वैसा ही फल मिलेगा, इसलिए विद्यार्थी का पहला और प्रमुख कर्म निष्ठा से पढ़ाई करना है।
सम्बोधन में कहा गया कि जब महाभारत के युद्ध से पहले अर्जुन ने अपने सामने खड़े अपने ही सगे-संबंधियों और गुरुओं को देखकर मानसिक दबाव में आकर हथियार डाल दिए थे, तब भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें भगवद्गीता का उपदेश देकर युद्ध के लिए पुनः तैयार किया। वक्ता ने समझाया कि यदि इतना बड़ा धनुर्धर अर्जुन भी प्रेशर और डिप्रेशन में जा सकता है और गीता के संदेश से बाहर निकल सकता है, तो आम विद्यार्थियों और आम जन के लिए भी गीता जीवन के हर चैलेंज और “एग्ज़ाम” से उबारने वाली मार्गदर्शक बन सकती है।
बच्चों को यह भी समझाया गया कि जीवन में आने वाली कठिनाइयाँ किसी युद्धभूमि की तरह हैं और एग्ज़ाम्स भी उसी तरह के चैलेंज हैं, जिनका सामना भगवद्गीता की प्रेरणा लेकर धैर्य, परिश्रम और सही कर्म के साथ करना चाहिए। मंच से विद्यार्थियों को प्रेरित किया गया कि वे गीता के श्लोकों और सिद्धांतों को केवल पाठ तक सीमित न रखें, बल्कि उन्हें अपने दैनिक जीवन, पढ़ाई और व्यवहार में भी अपनाएँ, ताकि वे मानसिक रूप से मजबूत, अनुशासित और सकारात्मक दृष्टिकोण वाले नागरिक बन सकें।