करनाल। आज की भागमदौड़ और निजी स्वार्थों से भरी जिंदगी में यदि कोई इंसानियत और अपनेपन की राह चुनता है तो उसे दर्द, तकलीफ और मुशिकलों का सामना करना पड़ता है लेकिन इन तमाम बाधाओं के बावजूद यदि वह इस रास्ते पर अडिग रहता है तो फिर उससे रुकावटें कोसों दूर भागकर एक दिन उसके जज्बे को सलाम करती हैं।
हम बात कर रहे हैं पेशे से डॉक्टर और मन से कवि डा. मुकेश अग्रवाल की, जिनके जज्बे को हर कोई सलाम भी करता है और उनकी कार्यशैली से बहुत कुछ सीखता भी है। डा. मुकेश अग्रवाल सन 2021 में अपनी दो काव्य संग्रहों के कारण खासे चर्चा से इसलिए आ गए क्योंकि इस काल में उनकी रचनाओं ने इंसान को अंधेरे से लड़ने की प्रेरणा दी। कोरोना काल में लिखी गई उनकी रचनाओं ने आम व्यक्ति के दिलों दिमाग पर खासा असर किया।
यही नहीं लगभग हर साहित्यिक क्षेत्र से जुड़ी हस्तियों ने उनके दोनों काव्य संग्रहों की मुक्तकंठ से तारीफ की। खासतौर पर हिंदी दिवस यानी उनके जन्मदिन पर उनकी कविता संग्रह भोर की ओर को खासी सराहना मिली। अपनी दोनों काव्य संग्रहों से उन्होंने ये भी साबित किया कि वक्त चाहे कितना भी कड़ा क्यों ना हो, इंसान का हौंसला उसे जिंदा रखने और आगे बढ़ाने में मील के पत्थर की तरह काम करता है।
मूल रूप से घरौंडा में रहने वाले डॉक्टर मुकेश अग्रवाल को अपने डॉक्टरी पेशे के कारण बाहर भी विजिट करना पडता है, इस कड़ी में वे कुछ देर के लिए करनाल में एक निजी रेस्टारेंट में आए तो मीडिया से मुलाकात में उन्होंने अपनी कोरोना काल के दौरान लिखी दोनों काव्य संग्रहों का जिक्र किया।
कोरोना काल के दौरान उनकी लिखी हुई दो काव्य संग्रह में पहली किताब का नाम है भोर की ओर और दूसरे काव्य संग्रह का नाम है वक्त के दरमियां। इससे पहले उन्होंने अपने आज तक के जीवन में यानी सन 2021से पहले अपने स्वभाव और प्रकृति के अनुरूप सिर्फ एक मानव हूं मैं काव्य संग्रह की रचना की।
आयुर्वेद व योग में राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता डा. मुकेश अग्रवाल ने इन दोनों काव्य संग्रहों को इसी साल में इसलिए लिखा क्योंकि ये वक्त बेहद संजीदगी का था, यही वो वक्त था जब हर कोई मायूस था और उसे हौंसले, हिम्मत की सख्त जरूरत थी, इसलिए उन्होंने इस काल में दो काव्य संग्रह लिखे।
मानवीय संवेदनाओं को छूने वाली कविताएं लिखने वाले डॉक्टर मुकेश अग्रवाल इस बात पर गहरे से यकीन करते हैं कि इस दुनिया को प्रेम से जीता जा सकता है, हम अच्छा करके भी बहुत कुछ हासिल कर सकते हैं उसके लिए हमें प्रतिदिन अपने काम को समर्पित भाव से करना चाहिए। डा. मुकेश अग्रवाल की मानें तो वे कहते हैं कि कविताएं तो मेरे मन का भाव हैं जो मैं देखता हूं, महसूस करता हूं उसे कागज पर उकेर देता हूं।
वे कहते हैं कि हम किसी को यदि धन इत्यादि नहीं दे सकते तो कम से कम एक मुस्कान तो दे सकते हैं इसे देने से हमारा कुछ नहीं जाएगा लेकिन दूसरे के जीवन में आशा का संचार होगा और शायद हमारा जीवन इसलिए तो बना है, इसलिए तो परमपिता परमात्मा ने हमें इस दुनिया में भेजा है के बिना उम्मीद के हम किसी के काम आएं। नए साल के अपने संकल्प को डॉ. मुकेश अग्रवाल कुछ इस तरह से बयां करते हैं-
“कभी भी नए साल मे मैं
ना नया संकल्प बनाता हूं
कोशिश करता हूं इतनी
ना कोई दिल दुखाता हूं
यूं तो मन में हसरतें हैं
बहुत कुछ कर जाउं मैं
बस खुद को हर साल मैं
बेहतर इंसान बनाता हूं।”