करनाल के करण स्टेडियम में इन दिनों एक अलग ही उत्साह और जज्बा देखने को मिल रहा है। कड़ाके की ठंड और सुबह की घनी धुंध के बावजूद, नन्हे खिलाड़ी अपने भविष्य को संवारने के लिए मैट पर पसीना बहा रहे हैं। खेल के प्रति यह जुनून केवल लड़कों तक सीमित नहीं है, बल्कि लड़कियां भी कुश्ती के दांव-पेंच सीखने में पीछे नहीं हैं। ये बच्चे रोजाना कई घंटों तक कड़ी मेहनत करते हैं ताकि एक दिन वे अंतरराष्ट्रीय मंच पर तिरंगा लहरा सकें।
करण स्टेडियम में अभ्यास करने वाले इन खिलाड़ियों में बहुत से ऐसे भी हैं जो राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर पदक जीत चुके हैं। अब उनका अगला लक्ष्य ओलंपिक है। खेल के प्रति अपनी गंभीरता को दर्शाते हुए, कई बच्चे सुबह और शाम तीन-तीन घंटे का कड़ा अभ्यास करते हैं। शिक्षा और खेल के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए इन खिलाड़ियों ने अपने स्कूल के समय में भी बदलाव किया है, जिससे उनके प्रशिक्षण में कोई बाधा न आए।
कुश्ती के प्रति लड़कियों के बढ़ते रुझान पर कोच का कहना है कि अब समय बदल चुका है। पहले जहां कुश्ती में केवल लड़कों का दबदबा माना जाता था, वहीं अब लड़कियां भी बड़ी संख्या में आगे आ रही हैं। विनेश फोगाट, साक्षी मलिक और गीता फोगाट जैसी दिग्गज महिला पहलवानों की सफलता ने इन नन्ही बच्चियों को प्रेरित किया है। ये लड़कियां उन्हें अपना आदर्श मानती हैं और उनकी तरह ही देश के लिए स्वर्ण पदक जीतने का सपना देखती हैं।
अभ्यास के दौरान खिलाड़ी केवल शारीरिक प्रशिक्षण ही नहीं लेते, बल्कि आधुनिक तकनीकों का भी सहारा ले रहे हैं। इंटरनेट और मोबाइल के माध्यम से वे अंतरराष्ट्रीय कुश्तियों को देखते हैं और विश्व स्तरीय पहलवानों की तकनीकों को सीखने का प्रयास करते हैं। प्रशिक्षकों के अनुसार, बच्चों में पदक जीतने की ऐसी ललक है कि वे अभ्यास के समय से पहले ही स्टेडियम पहुंच जाते हैं।
दूर-दराज के गांवों से आने वाले इन खिलाड़ियों का जज्बा वाकई काबिले तारीफ है। प्रतिकूल मौसम भी उनके इरादों को डगमगा नहीं पा रहा है। प्रत्येक खिलाड़ी की आंखों में एक ही सपना है—ओलंपिक का स्वर्ण पदक। वे जानते हैं कि यह रास्ता कठिन है, लेकिन उनकी कड़ी मेहनत और कोच का मार्गदर्शन उन्हें सफलता की ओर ले जा रहा है। अपने परिवार, कोच और देश का नाम रोशन करने की इच्छा ही उन्हें हर दिन मैट पर अपना सर्वश्रेष्ठ देने के लिए प्रेरित करती है।