कोच्चि — केरल के घरों में गूंजने वाली हंसी आज कुछ फीकी पड़ गई है। श्रीनिवासन—वह व्यक्ति जिसने एक पूरी पीढ़ी को अपनी कमियों पर हंसना और समाज की कड़वी सच्चाइयों पर सोचना सिखाया—अब हमारे बीच नहीं रहे। 69 वर्ष की आयु में उन्होंने अंतिम सांस ली।
दिग्गज अभिनेता, पटकथा लेखक और फिल्म निर्माता श्रीनिवासन का निधन शनिवार, 20 दिसंबर 2025 की सुबह लगभग 8:30 बजे त्रिपुनिथुरा तालुक अस्पताल में हुआ।
‘आम आदमी की आवाज’ का अंतिम सफर
श्रीनिवासन पिछले कुछ वर्षों से हृदय रोग और उम्र संबंधी बीमारियों से जूझ रहे थे। अस्पताल के सूत्रों के अनुसार, उनका अंत अचानक हुआ; जब उन्हें नियमित डायलिसिस के लिए ले जाया जा रहा था, तब उन्हें तीव्र शारीरिक संकट महसूस हुआ। चिकित्सा पेशेवरों के तमाम प्रयासों के बावजूद, अस्पताल पहुंचने के कुछ ही समय बाद उन्हें मृत घोषित कर दिया गया।
इस खबर ने फिल्म उद्योग और उन करोड़ों प्रशंसकों को स्तब्ध कर दिया है, जो उन्हें केवल एक सितारे के रूप में नहीं, बल्कि अपने स्वयं के जीवन के प्रतिबिंब के रूप में देखते थे।
व्यंग्य का वह जादूगर जिसने सिनेमा बदल दिया
1956 में पात्यम के एक छोटे से गांव में जन्मे श्रीनिवासन के पास एक फिल्मी सितारे जैसा पारंपरिक “लुक” नहीं था। इसके बजाय, उनके पास कुछ और भी शक्तिशाली था: मानवीय संवेदनाओं की बेजोड़ समझ।
लगभग पाँच दशकों के करियर और 225 से अधिक फिल्मों के माध्यम से, वह मलयालम सिनेमा के स्वर्ण युग के रचयिता बने।
-
पटकथा लेखक के रूप में: उन्होंने ‘संदेशम’ (1991) जैसी उत्कृष्ट कृतियाँ लिखीं, जिसे भारत का सबसे बड़ा राजनीतिक व्यंग्य माना जाता है।
-
निर्देशक के रूप में: उन्होंने ‘वदक्कुनोकियान्त्रम’ जैसी फ़िल्में दीं, जिन्होंने मध्यम वर्ग की असुरक्षाओं को बड़ी ईमानदारी से पर्दे पर उतारा।
-
अभिनेता के रूप में: वह एक “आम आदमी” के प्रतीक थे। चाहे वह जासूस ‘दासन’ की भूमिका हो या खाड़ी से लौटे किसी बेरोजगार की, उनका अभिनय हमेशा यथार्थ से जुड़ा रहा।
“श्रीनिवासन की प्रतिभा के बिना मलयालम सिनेमा पहले जैसा नहीं रहेगा। वह एक ऐसी शख्सियत थे जिन्होंने फिल्म निर्माण के हर क्षेत्र में अपनी धाक जमाई।” — पिनाराई विजयन, मुख्यमंत्री, केरल
एक विरासत जो सदैव जीवित रहेगी
श्रीनिवासन का प्रभाव उनके बेटों, विनीत और ध्यान श्रीनिवासन के करियर में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है, जिन्होंने उसी उद्योग में अपनी पहचान बनाई जिसे उनके पिता ने सींचा था। उनके परिवार में उनकी पत्नी विमला भी हैं, जो मद्रास फिल्म संस्थान के संघर्ष के दिनों से लेकर सफलता के शिखर तक उनके साथ खड़ी रहीं।
पुरस्कार और सम्मान: | श्रेणी | उल्लेखनीय कार्य | | :— | :— | | राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार | चिंताविष्ठयय श्यामला (सामाजिक मुद्दों पर सर्वश्रेष्ठ फिल्म) | | केरल राज्य पुरस्कार | 6 बार विजेता (सर्वश्रेष्ठ फिल्म, पटकथा और कहानी) | | फिल्मफेयर पुरस्कार (साउथ) | 2 बार विजेता |
अंतिम विदाई
उनके पार्थिव शरीर को अंतिम दर्शन के लिए एर्नाकुलम टाउन हॉल में रखा गया है। ममूटी और मोहनलाल जैसे दिग्गज अभिनेताओं से लेकर आम प्रशंसकों तक, हजारों लोग उस व्यक्ति को अलविदा कहने के लिए उमड़ पड़े हैं जिसने उन्हें आंसुओं के बीच भी मुस्कुराना सिखाया।
श्रीनिवासन की कलम अब शांत हो गई है, लेकिन उनकी यादें मलयाली दिलों में हमेशा जीवित रहेंगी। जैसा कि एक प्रशंसक ने नम आंखों से कहा, “हमने केवल एक अभिनेता को नहीं खोया; हमने उसे खो दिया है जो हमारी कहानी सबसे बेहतर तरीके से सुनाता था।”