करनाल के सेक्टर 13 की कालरा मेन मार्केट में नारायणा स्कूल के कक्षा 6 से 9 तक के विद्यार्थियों ने मोबाइल की लत पर जागरूकता लाने के लिए नुक्कड़ नाटक प्रस्तुत किया, जिसे देखने के लिए लोग चलते-चलते रुक गए। नाटक का मुख्य संदेश था कि बच्चे पढ़ाई और असली जिंदगी से कटकर मोबाइल स्क्रीन की नकली दुनिया में खो रहे हैं, इसलिए “मोबाइल नहीं, इंसान बनो”।
नाटक में एक किरदार को दिखाया गया जो हर समय गेम, रील्स, चैट और स्नैप में उलझा रहता है, मां की पुकार, होमवर्क और खेलकूद सबको नज़रअंदाज़ कर देता है। कहानी में आगे चलकर मोबाइल की लत के कारण सिरदर्द, आंखों में जलन, नींद टूटना और अकेलापन जैसे दुष्प्रभाव दिखाए गए, जिस पर डॉक्टर का पात्र साफ कहता है कि यह सीधे-सीधे मोबाइल एडिक्शन का असर है।
स्टेज से बच्चों ने संदेश दिया कि मोबाइल बुरा नहीं, उसका गलत इस्तेमाल बुरा है, और दर्शकों से “एक वादा करो – मोबाइल पर नहीं, जिंदगी पर ध्यान दोगे” जैसी पंक्तियों के साथ शपथ लेने को कहा। दर्शकों ने तालियों के साथ इस मैसेज का समर्थन किया और कई लोगों ने माना कि घर में पांच लोग होने के बावजूद सब अपने-अपने फोन में उलझे रहते हैं और आपस में बात तक नहीं करते।
नाटक के बाद एंकर ने दर्शकों से बातचीत में पूछा कि क्या वे इस संदेश से खुद को रिलेट कर पाए, जिस पर कई अभिभावकों ने स्वीकार किया कि बच्चे ही नहीं, बड़े भी मोबाइल में जरूरत से ज्यादा समय बिताते हैं। एक महिला ने कहा कि बच्चों को मोबाइल के फायदे तो नहीं समझाए जाते, लेकिन वे नुकसान वाले हिस्से को ही ज्यादा इस्तेमाल कर रहे हैं, जैसे बेवजह रील्स, चैट और सीक्रेट फ्रेंडशिप।
दर्शक आर.के. वर्मा और अन्य लोगों ने कहा कि ऐसे नाटक बार-बार स्कूलों और पब्लिक प्लेस पर होने चाहिए, ताकि बच्चों में जागरूकता बढ़े और वे व्हाट्सऐप–रील्स से दूर रहकर पढ़ाई व असली रिश्तों पर ध्यान दे सकें। कई अभिभावकों ने इस बात पर चिंता जताई कि बच्चे मोबाइल के कारण खाना तक ठीक से नहीं खाते और पारिवारिक बातचीत लगभग खत्म हो गई है, जो समाज के लिए खतरे की घंटी है।
नारायणा स्कूल की छात्रा अपेक्षा ने बतौर नैरेटर कहा कि इस स्ट्रीट प्ले के जरिए वे लोगों को स्क्रीन टाइम कम कर असली दुनिया में जीने का संदेश देना चाहते हैं, क्योंकि मोबाइल का ज्यादा इस्तेमाल पढ़ाई, रिश्तों और स्वास्थ्य – तीनों पर बुरा असर डालता है। एक अन्य छात्र लक्ष ने बताया कि उसने “Snapchat” का किरदार निभाकर यह दिखाने की कोशिश की कि आज की जनरेशन मोबाइल पर इतनी निर्भर हो गई है कि असली बातचीत, असली कनेक्शन और असली इमोशंस खोते जा रहे हैं।
स्कूल के प्रतिनिधि जॉन सर ने बताया कि नारायणा स्कूल 1979 से मजबूत अकादमिक नींव के साथ बच्चों के समग्र विकास पर जोर देता है और उनकी सोच है कि विद्यार्थी सिर्फ परीक्षा के लिए नहीं, बल्कि वास्तविक जीवन की चुनौतियों के लिए पढ़ें। उन्होंने कहा कि ऐसे सोशल थीम वाले नुक्कड़ नाटक छात्रों में जागरूकता, कॉन्फिडेंस और सामाजिक जिम्मेदारी की भावना पैदा करते हैं।
टीम लीडर किरण मैम ने कहा कि अगली पीढ़ी को अत्यधिक फोन उपयोग से बचाने के लिए माता–पिता और शिक्षक दोनों को ही घर और स्कूल में ऐसा माहौल बनाना होगा, जहां बच्चे प्रोडक्टिव और क्रिएटिव गतिविधियों में ज़्यादा समय बिताएं। उन्होंने सुझाव दिया कि बच्चों को खेल, ड्रामा, पिकनिक, और सामाजिक मेलजोल जैसी गतिविधियों की ओर प्रोत्साहित किया जाए, ताकि वे स्क्रीन से बाहर की दुनिया की चमक को फिर से महसूस कर सकें।
अंत में दर्शकों से अपील कि वे अपने और अपने बच्चों के मोबाइल यूज़ पर गंभीरता से सोचें और “रीस्टार्ट” बटन दबाकर असली जिंदगी जीने की शुरुआत करें। वीडियो के माध्यम से लोगों से यह भी कहा गया कि वे कमेंट्स में साझा करें कि इस नुक्कड़ नाटक और “मोबाइल नहीं, इंसान बनो” मैसेज से उन्होंने क्या सीखा और अपने जीवन में क्या बदलाव ला सकते हैं।