December 5, 2025
27 Nov 7
  • करनाल BJP कार्यालय के लिए हाईवे से सीधा रास्ता बनाने व 40 पेड़ काटने का मामला सुप्रीम कोर्ट में।​

  • 1971 युद्ध के वीर चक्र विजेता कर्नल देवेंद्र सिंह ने हाई कोर्ट के बाद अब शीर्ष अदालत में चुनौती दी।​

  • कर्नल का आरोप: फॉरेस्ट की मंजूरी बिना हॉर्टिकल्चर से परमिशन लेकर पेड़ काटे, रेजिडेंशियल एरिया बना ‘न्यूसेंस’।​

  • सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से पेड़ काटने और रास्ते की जरूरत पर कड़े सवाल किए; कर्नल सड़क बंद कराने की लड़ाई जारी रखेंगे।​

करनाल : मॉडल टाउन स्थित नए भाजपा कार्यालय के लिए नेशनल हाईवे–44 से सीधे जोड़ा गया रास्ता और इसके लिए लगभग 40 पेड़ काटे जाने का मामला अब सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है। 1971 के युद्ध के वीर चक्र विजेता रिटायर्ड कर्नल देवेंद्र सिंह, जिनका घर भाजपा कार्यालय के बिल्कुल साथ है, ने पहले पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट और अब सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर इस सड़क और पेड़ों की कटाई को चुनौती दी है।​

कर्नल देवेंद्र सिंह ने बताया कि 1998 में जब वे इस घर में शिफ्ट हुए थे तो सामने की पूरी ग्रीन बेल्ट खुली पड़ी थी, जहां मॉडल टाउन, दयानंद कॉलोनी और आईटीआई क्षेत्र का गंदा पानी आता था और सीवर की कोई सही व्यवस्था नहीं थी। तीन साल की कानूनी लड़ाई के बाद अदालत के हस्तक्षेप से वहां ग्रीन बेल्ट और पार्क विकसित हुआ, सीवर लाइन डली और क्षेत्र का वातावरण सुधरा, लेकिन भाजपा कार्यालय के लिए बनाई गई नई सड़क से यह पूरी हरियाली प्रभावित हो गई।​

उनके अनुसार, भाजपा कार्यालय के चारों तरफ पहले से सड़कें मौजूद हैं और मुख्य रोड भी लगभग 200 गज की दूरी पर है, इसलिए हाईवे से अलग से सीधा रास्ता बनाने की कोई ज़रूरत नहीं थी। उन्होंने आरोप लगाया कि 21 मीटर रोड पर ऑफिस दिखाने की तकनीकी शर्त पूरी करने के लिए यह नई सड़क बनाई गई, जो सीधे सर्विस लेन में मिलती है और नेशनल हाईवे की एंट्री के बिल्कुल पास होने से बेहद खतरनाक मोड़ बन गया है।​

कर्नल ने कहा कि जब उन्होंने ये प्लॉट लिए तो ग्रीनरी और शांत माहौल के लिए 10% एक्स्ट्रा पेमेंट हुड्डा को दी, लेकिन अब इस सड़क और अतिरिक्त स्ट्रक्चर ने उनके कॉर्नर प्लॉट का नॉर्थ साइड व्यू, धूप और हवा लगभग बंद कर दी। उनका कहना है कि रेजिडेंशियल एरिया में यह कार्यालय लगातार शोर, भीड़ और वीआईपी मूवमेंट के कारण बड़ा ‘न्यूसेंस’ बन चुका है, जहां रोजाना सैकड़ों गाड़ियां आती–जाती हैं और कई बार उनके गेट के सामने भी पार्क कर दी जाती हैं।​

उन्होंने बताया कि पहले हाई कोर्ट में रिट पर एक जज ने स्टे दिया था, लेकिन ठेका कॉपी समय पर न पहुंचने का बहाना बनाकर रातों–रात 100–150 मजदूर लगाकर हेडलाइट और फ्लड लाइट में यह सड़क बना दी गई। बाद में केस दूसरे जज के पास गया, जहां से रिट डिसमिस होने पर वे सुप्रीम कोर्ट पहुंचे और अब वहां दो सुनवाई हो चुकी हैं, जिसमें अदालत ने पेड़ काटने और रास्ते की जरूरत पर कड़े सवाल उठाए हैं।​

कर्नल देवेंद्र सिंह के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से पूछा है कि 40 पेड़ क्यों काटे गए, उनका क्या हुआ और जब वैकल्पिक सड़कें थीं तो यह रास्ता जरूरी क्यों था, यहां तक कि कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि ऑफिस यहां से हटाया भी जा सकता है। उन्होंने कहा कि यह सत्ता का दुरुपयोग है और रेजिडेंशियल एरिया में इस तरह का राजनीतिक कार्यालय लगातार धूम–धमाके, ढोल, कार्यक्रम और ट्रैफिक जाम के कारण निवासियों के लिए परेशानी पैदा कर रहा है।​

पेड़ों की कटाई पर सवालों के जवाब में कर्नल का कहना है कि प्रशासन या भाजपा ने फॉरेस्ट डिपार्टमेंट से नहीं, बल्कि हुड्डा के अपने हॉर्टिकल्चर विभाग से ही पेड़ काटने की अनुमति ली, जबकि सड़क किनारे के पेड़ों के लिए फॉरेस्ट विभाग की अनुमति अनिवार्य होती है। उनका आरोप है कि जोनल प्लान में बदलाव कर, कम पढ़े जाने वाले छोटे अखबार में इश्तहार निकालकर और बिना किसी अन्य बिडर के, प्लॉट अलॉट कर कार्यालय बना लिया गया, क्योंकि “सरकार खुद की थी”।​

कर्नल ने कहा कि ऑफिस के कार्यक्रमों के दौरान इतनी भीड़ और गाड़ियां होती हैं कि इलाके में पार्किंग की भारी दिक्कत होती है, ग्रीन बेल्ट को भी पार्किंग की तरह इस्तेमाल किया जाता है और कई बार उन्होंने एसपी से शिकायत कर कम से कम ट्रैफिक पुलिस तैनात करने की मांग की है। उनका कहना है कि अगर घर में कोई इमरजेंसी हो जाए तो इतने जमघट में वे घर से बाहर निकल भी नहीं सकते, जबकि वीआईपी विज़िट के दौरान उनकी ही गाड़ी उठा कर ले जाना “सिक्योरिटी” के नाम पर आम बात हो गई है।​

उन्होंने स्पष्ट कहा कि अब उनकी प्ली केवल पेड़ों के मुद्दे तक सीमित नहीं, बल्कि इस सड़क को दोनों तरफ से बंद कराने की भी है, ताकि भविष्य में ऐसी मिसाल न बने कि किसी भी राजनीतिक कार्यालय के लिए ग्रीन बेल्ट और रेजिडेंशियल शांति से समझौता कर दिया जाए। सुप्रीम कोर्ट के अंतिम फैसले का इंतजार करते हुए भी वे अपनी कानूनी लड़ाई जारी रखने के लिए प्रतिबद्ध हैं और कहते हैं कि वे फौजी हैं, 1971 की जंग लड़ी है, खून बहाया है, वीर चक्र पाया है, इसलिए “आखिर तक लड़ेंगे, जो होगा देखा जाएगा।”

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