December 5, 2025
26 Nov 3
  • करनाल जिला सचिवालय पर ट्रेड यूनियन कर्मचारियों का जोरदार प्रदर्शन, नए लेबर कोड के खिलाफ नारेबाजी।​
  • लेबर कोड की प्रतियां जलाईं, 44 श्रम कानून बहाल करने और चारों लेबर कोड रद्द करने की मांग।​
  • भवन निर्माण मजदूर बोर्ड ठप होने पर नाराजगी, मजदूरों को सुविधाएं बहाल करने की अपील।​
  • कर्मचारियों की चेतावनी, मांगें न मानी तो बड़े आंदोलन और सड़क जाम की तैयारी।

हरियाणा के करनाल में चार नए लेबर कोड और सरकार की मजदूर–कर्मचारी विरोधी नीतियों के खिलाफ ट्रेड यूनियन से जुड़े सैकड़ों कर्मचारियों ने जिला सचिवालय तक पैदल मार्च कर जोरदार प्रदर्शन किया और तहसीलदार को प्रधानमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपा। कर्मचारियों ने नए लेबर कानूनों की प्रतियां जलाकर उन्हें तुरंत रद्द करने और पुराने 44 श्रम कानून बहाल करने की मांग की, साथ ही चेतावनी दी कि मांगें न माने जाने पर बड़ा आंदोलन खड़ा किया जाएगा।​

प्रदर्शनकारियों ने नारेबाजी करते हुए नए लेबर कोड को मजदूरों, किसानों और कर्मचारियों के खिलाफ बताते हुए कहा कि सरकार ने पहले मजदूरों के संघर्ष और शहादत से बने 29 कानून खत्म कर चार लेबर कोड थोप दिए हैं, जिनका सीधा दुष्परिणाम श्रमिक वर्ग पर पड़ेगा। उन्होंने आरोप लगाया कि यूनियन बनाने, हक की आवाज उठाने और फैक्टरी बंद करने संबंधी प्रावधानों को इस तरह बदला गया है कि अब 100 की जगह 300 कर्मचारियों तक बिना सरकारी अनुमति के फैसले लिए जा सकेंगे, जिससे सुरक्षा और रोजगार दोनों असुरक्षित हो जाएंगे।​

कर्मचारियों ने बताया कि 26 नवंबर 2020 को शुरू हुए किसान आंदोलन की पांचवीं वर्षगांठ पर पूरे देश और हरियाणा के सभी जिलों में विरोध कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं, जिनका मकसद सरकार को उसके लिखित वादों की याद दिलाना है। उन्होंने कहा कि पांच साल पहले किसानों और मजदूरों से लिखित में किए गए वादों पर आज तक कोई गंभीर विचार नहीं हुआ, उलट सरकार नए हमले कर रही है, जिसमें लेबर कोड के साथ कृषि और फसलों से जुड़े समझौतों को भी शामिल किया गया है।​

प्रदर्शन के दौरान कर्मचारियों ने जिला सचिवालय के बाहर और भीतर दोनों जगह सरकार विरोधी नारे लगाए, किसान–मजदूर–कर्मचारी–व्यापारी–नौजवान एकता जिंदाबाद, कर्मचारी हरियाणा जिंदाबाद और किसान यूनियन जिंदाबाद जैसे नारे लगाते हुए अपनी एकजुटता का संदेश दिया। सुरक्षा के मद्देनज़र जिला सचिवालय परिसर में पुलिस बल भी तैनात रहा, जबकि तहसीलदार ने मौके पर पहुंचकर प्रतिनिधिमंडल से ज्ञापन प्राप्त किया और आगे की कार्रवाई के लिए इसे अग्रेषित करने की बात कही।​

भवन निर्माण मजदूरों से जुड़े प्रतिनिधि ने आरोप लगाया कि हरियाणा सरकार ने चंडीगढ़ स्थित भवन निर्माण मजदूर बोर्ड को पिछले छह–सात महीनों से लगभग ठप कर रखा है, जिसके कारण किसी भी मजदूर को कोई सुविधा नहीं मिल पा रही और बोर्ड को खत्म करने जैसा माहौल बना दिया गया है। उन्होंने मांग रखी कि बोर्ड को तत्काल प्रभाव से सक्रिय कर मजदूरों की लंबित सुविधाएं बहाल की जाएं, नहीं तो मजदूर वर्ग मजबूर होकर उग्र आंदोलन की राह पकड़ेगा।​

दूसरे वक्ताओं ने कहा कि देश की आजादी में मजदूरों और किसानों ने खून देकर योगदान दिया, जिसके बाद लंबे संघर्षों से 44 श्रम कानून बनवाए गए, जिन्हें किसी प्रिंटिंग प्रेस के पन्नों पर नहीं बल्कि श्रमिकों के बलिदान से लिखा गया था, पर वर्तमान सरकार ने उन्हें रद्द कर दिया। उन्होंने सरकार को “कर्मचारी–किसान विरोधी” करार देते हुए कहा कि यह सत्ता हमेशा कटौती, डीए रोकने और न्यूनतम वेतन घटाने की बात करती है, जबकि कोरोना काल का डीए तक कर्मचारियों को नहीं दिया गया।​

कर्मचारियों ने आरोप लगाया कि भाजपा ने अच्छे दिन के नाम पर सत्ता हासिल की थी, लेकिन अब वही सरकार लेबर कोड के बहाने न्यूनतम वेतन की व्यवस्था को खत्म कर रही है और नेताओं के बयान बताते हैं कि वे 178 रुपये की मजदूरी को भी पर्याप्त मानते हैं, जो मौजूदा महंगाई में अत्यंत शर्मनाक है। उन्होंने कहा कि न्यूनतम वेतन बढ़ाने की वर्षों पुरानी मांग के बावजूद मजदूरों की आय में सुधार के बजाय गिरावट की स्थितियां पैदा की जा रही हैं, जिससे परिवार चलाना मुश्किल हो गया है।​

वक्ताओं ने साफ शब्दों में कहा कि या तो केंद्र सरकार चारों लेबर कोड तुरंत प्रभाव से रद्द कर 44 श्रम कानून बहाल करे, नहीं तो आने वाले समय में इससे कहीं बड़े आंदोलन का आगाज होगा जिसमें सड़कें जाम होंगी और कामकाज ठप होगा। उनका कहना था कि वर्तमान प्रदर्शन देशभर में चल रहे विरोध अभियान का हिस्सा है और करनाल के कर्मचारियों ने प्रधानमंत्री के नाम ज्ञापन देकर साफ संदेश दिया है कि वे अपने अधिकारों पर किसी प्रकार की कटौती स्वीकार नहीं करेंगे।​

जिला सचिवालय परिसर में धरने पर बैठे कर्मचारियों ने कहा कि सरकार अगर समय रहते बातचीत कर कोई बीच का रास्ता नहीं निकालती तो यह संघर्ष लंबा और तीखा हो सकता है, जिसकी जिम्मेदारी पूरी तरह सत्ता पक्ष पर होगी। फिलहाल कर्मचारियों ने शांति से ज्ञापन सौंपकर सरकार को चेतावनी दी है और उम्मीद जताई है कि जल्द ही उनकी मांगों पर सकारात्मक विचार होगा, अन्यथा अगला कदम बड़े स्तर के आंदोलन की तैयारी रहेगा।

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