December 5, 2025
16 Nov 10

करनाल : दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा शिव मंदिर नजदीक़ सैंट्स स्पोर्ट्स अकैडमी फुसगढ़ करनाल,में चल रही भगवान शिव कथा के तीसरे दिवस में दिव्य गुरु श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या कथा व्यास साध्वी सुश्री त्रिवेणी भारती जी ने कहां की निस्संदेह भोलेनाथ जी का श्रृंगार गजब का हैं! अनूठा और विचित्र! पर यह विचित्र रूप उन्होंने ऐसे ही धारण नहीं किया सच्चाई तो यह है कि उनके स्वरूप का एक-एक पहलू महान शिक्षाएं और संदेश देता हैं |

उनका हर वस्त्र और अलंकार एक इशारा है,चैतन्य शिवत्व की ओर! इन इशारों से मानो एक ही गूँज उठती है, जो हमसे कहती है – उठो ! जागो! चैतन्य शिव को देखो! ‘शव – त्व’ से ‘शिव – त्व’ की ओर बढ़कर दिखाओ | शास्त्रों में भगवान शिव को त्रिनेत्रधारी अर्थात तीन नेत्रों वाला कहा गया |

उनके स्वरूप का यह पहलू हमको एक अच्छा संदेश देता है | वह यह कि हम सब भी तीन नेत्रों वाले हैं हम सभी के माथे पर एक तीसरा नेत्र स्थित है पर यह नेत्र जीवन भर बंद ही रहता है | इसलिए भगवान शंकर का जागृत तीसरा नेत्र प्रेरित करता है कि हम भी एक पूर्ण गुरु के शरण प्राप्त कर अपना यह शिव नेत्र जागृत कराएँ | जैसे ही हमारा यह नेत्र खुलेगा, हम अपने भीतर समाई ब्रह्म – सत्ता का साक्षात्कार करेंगे |

ईश्वर का दर्शन कर पाएंगे | भगवान शिव के गले में सर्प लिपटे हुए हैं जहां संसार में सर्प को दुर्गुणी प्राणी माना जाता है, लेकिन वह भगवान शंकर के गले का हार है | यह भगवान शिव की शक्ति और करुणा दोनों के बारे में बताता है ब्रह्मज्ञान में स्थित साधक भी इस जहरीले संसार को अपना साथ, अपना प्यार देते हैं वह बुरे से बुरे मनुष्य को भी गले लगाने में सकूचाते नहीं | लेकिन वहीं दूसरी और वह इनकी जहरीली फुंकारों और डंकों से प्रभावित या पराजित भी नहीं होते हैं |

यहां सभी देवताओं के गले में गुलाब कमल आदि फूलों के हार लहराते हैं वही भगवान शंकर नरमुंडों का हार जो प्रतीक है हमारे जीवन की क्षणभंगुरता का | जिनमें जीवन कुछ काल के लिए रहा पर फिर चिता की लपटों में नष्ट हो गया | भगवान शिव के सिर पर सजा चंद्रमा जो की सोम रस का प्रतीक है यानी की भगवान शिव जो कि अमृत प्रदान करने वाले है |

भगवान शिव के हाथों में सजा डमरू प्रतीक है भीतरी नाद का भगवान शिव इस डमरू को धारण कर समाज को इसी नाद पर एकाग्र होने की प्रेरणा दे रहे हैं उठो और पूर्ण तत्त्ववेता गुरु से ब्रह्मज्ञान प्राप्त कर इस नाद को जागृत करो! कारण कि यह ब्रह्मनाद अनियंत्रित मन को ईश्वर में लय करने की उत्तम युक्ति है |

भगवान शिव का वाहन नंदी बैल धर्म का प्रतीक है ईश्वर के साधना धर्म पर सवार होकर ही की जा सकती हैं इसलिए भगवान नन्दिकेश धर्म पर अडिग रहने की प्रेरणा देते हैं | भगवान शिव की जटाओं से निकली माँ गंगा प्रतीक है प्रकृति की |

स्वयं प्रभु भी चाहते हैं कि इस प्रकृति की रक्षा हो, सुरक्षा हो यह केवल भगवान शिव ही नहीं बल्कि हर युग में जब भी भगवान ने इस धरा पर अवतार धारण किया हर बार उन्होंने इस प्रकृति की रक्षा करने हेतु स्वयं आगे आए |

द्वापर युग में स्वयं भगवान श्री कृष्ण जी ने कालिया नाग का मर्दन कर यमुना नदी को विष मुक्त कराया था | यानी कि हर युग में प्रभु ने हमें यही सिखाया कि अगर हम प्रकृति की रक्षा करेंगे तो कहीं ना कहीं हमारा जीवन भी स्वस्थ रहेगा, सुरक्षित रहेगा |

इसलिए प्राकृतिक संसाधनों को बचाना वो चाहे वन हो, नदियां हो उनको बचाना हर एक मानव का कर्तव्य है | साध्वी जी ने कहा कि प्रभु का हर एक श्रृंगार हमें जीवन जीने की कला सिखाता है | इसीलिए एक श्रेष्ठ जीवन जीना है तो हमें भगवान शिव से जुड़ना होगा उनकी भक्ति करनी होगी | यही एक जीवात्मा का परम लक्ष्य है भगवान शिव को प्राप्त करना | कथा का समापन प्रभु की पावन पुनीत आरती के साथ हुआ |

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.