December 23, 2024
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पाकिस्तान के रावल पिंडी में स्थित राजा बाजार में एक जैन मंदिर जिसमें जैन तीर्थाकरों की मूर्तियां प्रतिष्ठित है। इस मंदिर पर 70 साल से ताला लटका हुआ है। पाकिस्तान का एक मौलवी मौलाना अशरफ अली इस मंदिर को सुरक्षित रखे हुए है। वह अभी भी इस इंतजार में है कि भारत का जैन समाज इस मंदिर में रखी मूर्तियों को ले जाएगा। 70 साल बाद करनाल के जैन समाज ने इन मूर्तियों की सुध ली है। दिगम्बर जैन समाज करनाल की बैठक इस मुद्दे को लेकर हुई।

जिसमें यह तय किया गया कि जैन समाज का प्रतिनिधि मंडल विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से मिलकर पाकिस्तान में बंद जैन मंदिर की मूर्तियों को भारत में लाने के लिए मांग करेगा। उन्होंने कहा कि यह दुर्भाग्य की बात है कि आज तक जैन मूर्तियां और मंदिर ताले में बंद है। यहां पर मदरसा बना हुआ है। उन्होंने इस बात के लिए पाकिस्तान के मोलवी मोलाना अशरफ अली को साधुवाद देते हुए कहा कि वह इन मूर्तियों को सहेज कर रखे हुए है। बैठक की अध्यक्षता अध्यक्ष निर्मल कुमार जैन ने की। इस मौके पर पूर्व अध्यक्ष निर्दोष कुमार जैन ने कहा कि चाहे भले ही समाज के करोड़ो रुपए खर्च हो जाएं, लेकिन जैन समाज की इस धरोहर को भारत में लाने के लिए पूरे पय्रास किए जाऐंगे। इन मूर्तियों के लिए विशेष मंदिर भी बनवाया जाएगा। प्रधानमंत्री तथा विदेश मंत्री को इस आशय का एक पत्र भी लिखा गया है।

जिसमें लिखा गया है कि इन मूर्तियों को लाने के लिए पाकिस्तान उच्चायोग के माध्यम से पत्र व्यवहार किया जाएं। इस मौके पर हरियाणा प्रदेश व्यापार मंडल के प्रदेश प्रवक्ता किशोर नागपाल ने बताया कि व्यापार मंडल इस मुहिम का समर्थन करता है और इस मुहिम को आगे ले जाने तक पूरा सहयोग किया जाएगा। बैठक मे जयप्रकाश जैन, निर्दोष, दीपक कुमार, वीरेश कुमार, दिनेश कुमार, हरीश गोयल, सुशील कुमार, अजय कुमार, राजकुमार जैन, प्रवीन कुमार जैन मौजूद थे।
विभाजन के समय मंदिर को बंद कर चॉबी सौंप दी थी मौलवी को : जब देश का विभाजन हुआ था तो पाकिस्तान के रावल पिंडी में जैन मंदिर था। इस मंदिर को सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी जैन समाज के लोग तत्कालीन मौलवी मोलाना गुलाम उल्ला खान को सौंपी थी ओर कहा था कि वह इस मंदिर को सहेजकर रखें। मोलाना गुलाम उल्ला खान के वारिस जैन समाज को मंदिर की चाबी लौटाना चाहते है। उनका कहना है कि जब बाबरी मस्जिद भारत में टूटी थी तो उस समय भी पाकिस्तान के लोग मंदिर को तोडऩे के लिए आए थे। लेकिन उस समय मूर्तियां सुरक्षित रखी गई।

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