December 23, 2024
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Live – देखें – स्वतंत्रता सेनानी खुशी राम का राजकीय सम्मान के साथ किया संस्कार, प्रशासन की ओर से एसडीएम नरेन्द्र पाल मलिक ने उनके पार्थिव शरीर पर पुष्प चक्र अर्पित कर दी श्रद्घांजली।

स्वतंत्रता सेनानी खुशी राम की अंतिम यात्रा में सामाजिक व धार्मिक संस्थाओं के प्रतिनिधि तथा काफी संख्या में लोग हुए शामिल स्वतंत्रता सेनानी खुशी राम का राजकीय सम्मान के साथ मॉडल टाउन स्थित शिवपुरी में संस्कार किया गया।

प्रशासन की ओर से एसडीएम नरेन्द्र पाल मलिक ने उनके पार्थिव शरीर पर पुष्प अर्पित करके श्रद्घांजली दी तथा तहसीलदार राजबक्श और डीएसपी विरेन्द्र सैनी भी उपस्थित रहे। इसके अलावा पुलिस की टुकड़ी ने मातम धुन व शस्त्र उल्टे कर श्रद्घांजली दी और एक राउंड फायर कर सलामी दी।

उनकी अंतिम यात्रा में सामाजिक व धार्मिक संस्थाओं के प्रतिनिधि तथा काफी संख्या में लोग शामिल हुए। खुशी राम के निधन पर स्वतंत्रता सेनानी उत्तराधिकारी संगठन के अध्यक्ष एडवोकेट नरेंद्र सुखन, समाजसेवी बाल कृष्ण कौशिक व सामाजिक संस्थाओं के पदाधिकारियों और नागरिकों ने शोक व्यक्त किया है।

बता दें कि जिला में बचे आखिरी स्वतंत्रता सेनानी 102 वर्षीय खुशी राम ने रविवार की शाम 5:13 बजे वसंत विहार स्थित अपने घर पर अंतिम सांस ली। बीमारी के चलते उन्हें 26 फरवरी को कल्पना चावला राजकीय मेडिकल कालेज मे भर्ती करवाया गया था, जहां से 27 फरवरी को उन्हें पीजीआई चंडीगढ़ रेफर कर दिया गया।

पीजीआई में सही उपचार नहीं होने के कारण उसी दिन परिजन उन्हें करनाल के निजी अस्पताल में ले आए थे। शनिवार की रात को अस्पताल से छुट्ïटी देने के बाद उन्हें घर ले जाया गया था, जहां रविवार को उन्होंने अंतिम सांस ली।

खुशी राम का जन्म 10 फरवरी 1918 को करनाल जिले के सालवन गांव में अनुसूचति जाति परिवार में हुआ।

उनके गांव में और भी कई क्रांतिकारी थे, उनके संपर्क में आने से खुशी राम स्वतंत्रता संग्राम की गतिविधियों में शामिल हो गए थे। उनके गांव में जब ब्रिटिश सत्ता ने लगान लगाया तो ग्रामीणों ने कड़ा विरोध किया था। तब हुकूमत ने गांव में सैनिक तैनात कर दिए थे। ग्रामीणों पर बहुत जुल्म हुए थे। खुशी राम बताते थे कि हैदराबाद का नवाब उस्मान अली अपनी रियासत को अलग रखना चाहता था।

उसने हिंदुओं के खिलाफ साजिश रचनी शुरू कर दी थी। हिंदुओं के रीति रिवाजों पर पाबंदी लगा दी थी। तब उसके खिलाफ संघर्ष हुआ था। देश के कोने-कोने से लोग हैदराबाद गए थे। 18 अगस्त 1939 को खुशी राम खुद उस आंदोलन में शामिल हुए और उन्हें जेल काटनी पड़ी थी। सन 1942 में खुशी राम को क्रांति की गतिविधियों के चलते मुल्तान की जेल में डाल दिया गया था।

उस वक्त करनाल में बाबू मूलचंद जैन सहित कई क्रांतिकारी जेल में थे। अंग्रेजों ने निर्दयता से पीटते हुए खुशी राम का हाथ तोड़ दिया था। इसके बावजूद खुशी राम का जोश और उत्साह कम नहीं हुआ था।

सरकार ने 21 अक्तूबर 1992 को उनकी स्वतंत्रता सेनानी की पेंशन लागू की। उससे पहले उनको ताम्रपत्र देकर सम्मानित किया गया। 8 अगस्त 2004 को खुशी राम को लकवा हो गया था। उनका बड़ा बेटा जयप्रकाश बीएसएनएल से सेवानिवृत सुप्रीटेंडेंट है और छोटा बेटा जगमेंद्र सिंह भारतीय वायु सेना से एक्स वारंट आफिसर है।

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