करनाल : सिखों के नौवें गुरु, श्री गुरु तेग बहादुर जी की 350वीं शहीदी दिवस के उपलक्ष में करनाल के प्रेमनगर गुरुद्वारे की ओर से भव्य नगर कीर्तन निकाला गया, जिसमें सैकड़ों–हजारों की संख्या में संगत और स्कूली बच्चों ने उत्साह से भाग लिया। नगर कीर्तन प्रेमनगर एवं झप्पड़वाले गुरुद्वारे से शुरू होकर पूरे शहर में घूमते हुए आगे विभिन्न मार्गों से होकर निकला, जहाँ रास्ते भर श्रद्धालु गुरुपालकी के दर्शनों के लिए उमड़ते नज़र आए।
खालसा मॉडर्न स्कूल सहित विभिन्न स्कूलों के नन्हे–मुन्ने बच्चों ने सिख मर्यादा अनुसार पोशाकें पहनकर शोभायात्रा में हिस्सा लिया और भक्ति–भाव से भरे कीर्तन, भजनों व वाद्ययंत्रों के माध्यम से श्रद्धा व्यक्त की। बच्चों के हाथों में गुरु तेग बहादुर जी की जीवन गाथा, त्याग, बलिदान, जन्म-वर्ष और उनकी विशेषताओं का वर्णन करतीं तख्तियाँ और पोस्टर थे, जबकि कुछ छात्रों ने अपने हाथों से गुरु साहिब की सुंदर तस्वीरें बनाकर संगत के सामने पेश कीं।
प्रेमनगर गुरुद्वारे से आरंभ हुए नगर कीर्तन में गुरु की पालकी के साथ सत्संग और कीर्तन होते रहे, ढोलक और भक्ति-गीतों की गूंज से पूरा मार्ग गुँजायमान रहा। महिलाओं ने मार्ग में आगे–आगे चलकर सड़क पर फूल बिखेरते और सफाई करते हुए पालकी का सम्मान किया, जबकि पीछे से सजाए गए वाहनों और झाँकियों की लंबी कतार नगर कीर्तन की शोभा बढ़ाती दिखी।
एक अध्यापिका ने बताया कि बच्चों ने बड़े उत्साह से गुरु तेग बहादुर जी के शहीदी दिवस पर पार्टिसिपेट किया और अपने प्रदर्शन के माध्यम से गुरु साहिब के योगदान को दिखाने की पूरी कोशिश की। बच्चों द्वारा बनाई गई गुरु तेग बहादुर जी की पेंटिंग्स और पोस्टर्स पर “त्याग”, “बलिदान” और धर्म रक्षा से जुड़े संदेश लिखे गए, जिससे नई पीढ़ी को उनके आदर्शों से जोड़ा जा रहा है।
नगर कीर्तन के दौरान युवाओं द्वारा गतका (सिख युद्ध-कला) का प्रदर्शन विशेष आकर्षण का केंद्र रहा, जहाँ पर कैरतब, नृत्य-नुमा युद्धक कौशल और शस्त्रों के साथ तालमेल ने संगत की तालियाँ बटोरीं। इन प्रदर्शनों के जरिए सिख वीरता, अनुशासन और आत्म-सुरक्षा की परंपरा को जीवंत रूप से दिखाया गया, जिसे देखकर बच्चों और युवाओं को प्रेरणा मिली।
एक ज्ञानी ने मौके पर गुरु तेग बहादुर जी की शहादत की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि बताते हुए कहा कि औरंगज़ेब के शासनकाल में जब पूरे देश को जबरन मुस्लिम बनाने की कोशिशें हो रही थीं, तब कश्मीर के पंडित कृपाराम दत्त उनकी शरण में आनंदपुर साहिब पहुँचे। गुरु साहिब ने सन 1675 में दिल्ली के चांदनी चौक में अपना शीश बलिदान कर हिंदू, सिख और समूची मानवता के धर्म की रक्षा की, इसी बलिदान की याद में हर साल यह नगर कीर्तन निकाला जाता है।
ज्ञानी ने संगत से विनती की कि यह 350वाँ शहीदी वर्ष है, सभी सिखों और हिंदुओं का फर्ज बनता है कि वे गुरु साहिब की शहादत को नमन करें और उनके आदर्शों पर चलकर मानवता, भाईचारा और धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा करें। उन्होंने कहा कि यदि गुरु तेग बहादुर जी जैसे महान गुरु न होते तो आज इस देश में कोई भी व्यक्ति खुलकर अपने धर्म का पालन और चैन की सांस नहीं ले पाता।
नगर कीर्तन के मार्ग में जगह–जगह लंगर और भंडारे लगाए गए, जहाँ प्रसाद और कराह प्रसाद वितरित किया गया और राहगीरों को भी श्रद्धा से स्वागत कर सेवा भाव का परिचय दिया गया। महिलाएँ, बुजुर्ग, युवा और बच्चे सब मिलकर “सत श्री अकाल” और “बोले सो निहाल, सत श्री अकाल” के जयकारे लगाते नज़र आए, जिससे पूरा वातावरण आध्यात्मिक और उत्साहपूर्ण हो गया।
सभी शहरवासियों से अपील कि वे घरों से बाहर निकलकर गुरु तेग बहादुर जी के इस शहीदी नगर कीर्तन के दर्शनों का लाभ उठाएँ और अपनी नई पीढ़ी को भी इतिहास और बलिदान की इन स्मृतियों से अवगत कराएँ। प्रेमनगर गुरुद्वारा प्रबंधन की ओर से भी श्रद्धालुओं को आमंत्रित किया गया कि वे गुरुपालकी के आगे माथा टेककर गुरु साहिब के चरणों में नमन करें और उनके आदर्शों को जीवन में उतारने का संकल्प लें।