December 5, 2025
19 Nov 9

सेक्टर-8/करनाल : करनाल के सेक्टर-8 स्थित सेंट कबीर पब्लिक स्कूल में फायर डिपार्टमेंट के साथ मिलकर बुधवार को बड़े स्तर पर फायर मॉक ड्रिल आयोजित की गई, जिसमें स्कूल के बच्चों और स्टाफ को आग लगने की इमरजेंसी सिचुएशन से निपटने की प्रैक्टिकल ट्रेनिंग दी गई। ड्रिल के दौरान सायरन बजते ही सभी क्लासरूम्स से बच्चों को डिसिप्लिन के साथ इमरजेंसी एग्जिट्स के जरिए बाहर निकाला गया और यह दिखाया गया कि अगर स्कूल बिल्डिंग के किसी हिस्से में आग लग जाए तो किस तरह सुरक्षित तरीके से निकासी की जानी चाहिए और पैनिक से कैसे बचना है।​

कार्यक्रम के दौरान कमेंट्री के माध्यम से बच्चों को समझाया गया कि छोटी सी लापरवाही भी बड़ा हादसा बन सकती है, इसलिए स्कूलों में फायर सेफ्टी की जानकारी केवल जरूरी नहीं बल्कि बेहद अनिवार्य है। मॉक ड्रिल में यह पूरा सीन क्रिएट किया गया कि नीचे की मंजिल पर आग लगी है, ऐसे में ऊपर की कक्षाओं से बच्चों को किस दूसरे रास्ते से निकाला जाएगा, किन रास्तों को अवॉइड करना है और किस तरह टीचर्स की कमांड पर शांत रहकर कतारबद्ध तरीके से नीचे उतरना है।​

स्कूल परिसर में फायर डिपार्टमेंट की टीम ने लाइव डेमो के जरिए बच्चों को अलग-अलग तरह की आग और उन्हें बुझाने के तरीके समझाए। टीम ने बताया कि हर आग पानी से नहीं बुझाई जा सकती, खासकर लिक्विड या इलेक्ट्रिकल फायर के केस में पानी खतरनाक हो सकता है, इसलिए वहां सही क्लास के फायर एक्सटिंग्विशर का इस्तेमाल ही सुरक्षित विकल्प होता है।​

फायर फाइटर्स ने फायर एक्सटिंग्विशर चलाने की स्टेप-बाय-स्टेप प्रैक्टिकल ट्रेनिंग दी और “ए, एस, एस” जैसे बेसिक फॉर्मूले की जानकारी दी – पहले फायर के बेस पर एम करना, फिर लीवर को स्क्वीज़ करना और उसके बाद नोजल को साइड-टू-साइड स्वीप करते हुए पूरे एरिया की फ्लेम को कवर करना। बच्चों ने खुद अपने हाथों से फायर एक्सटिंग्विशर चलाकर देखा कि कैसे कुछ सेकंड में लपटों पर काबू पाया जा सकता है, जिससे उनका भरोसा और आत्मविश्वास दोनों बढ़ा।​

ड्रिल के दौरान बच्चों को स्मोक और गैस के खतरे भी समझाए गए कि धुआं इनहेल करने से ऑक्सीजन लेवल कम हो जाता है और बेहोशी या दम घुटने की स्थिति बन सकती है। फायर अफसरों ने बताया कि ऐसी स्थिति में झुककर या क्रॉल करते हुए लो लेवल पर मूव करना चाहिए, मुंह और नाक को कपड़े से ढकना चाहिए और जल्द से जल्द सेफ एरिया या खुले स्थान की ओर निकलना चाहिए।​

फायर डिपार्टमेंट के ऑफीसर ने यह भी समझाया कि घर या किसी बिल्डिंग में अगर किसी के कपड़ों में आग लग जाए तो भागने की बजाय तुरंत जमीन पर लेटकर रोल करना सबसे ज़रूरी कदम है। उन्होंने कहा कि सिंथेटिक के बजाय कॉटन या गीले कंबल से शरीर को ढककर रोल करवाने से लपटों को जल्दी कंट्रोल किया जा सकता है और बर्न इंजरीज़ को कम किया जा सकता है, जबकि भागने से ऑक्सीजन सप्लाई बढ़ने के कारण आग और तेजी से फैलती है।​

डायल 112 नंबर की जानकारी भी बच्चों और स्टाफ को दोहराई गई, ताकि किसी भी फायर इमरजेंसी या हादसे की स्थिति में तुरंत सही नंबर पर कॉल करके फायर डिपार्टमेंट और इमरजेंसी सेवाओं तक सूचना पहुंचाई जा सके। फायर अफसर ने कहा कि हर सेकंड की कीमत होती है, जितनी जल्दी सूचना मिल जाएगी उतना ही कम प्रॉपर्टी लॉस और जान-माल का नुकसान होगा।​

ड्रिल के बाद कई स्टूडेंट्स ने अपनी सीख शेयर की। एक छात्र ने बताया कि पहले तक दिमाग में फायर को लेकर डर था, लेकिन अब प्रैक्टिकल नॉलेज के बाद समझ आ गया है कि सेफ एग्जिट ढूंढना, फायर एक्सटिंग्विशर का सही इस्तेमाल और टाइम पर फायर ब्रिगेड को कॉल करना कितना जरूरी है। दूसरी छात्रा ने कहा कि सबसे अहम बात यह सीखी कि किसी भी इमरजेंसी में खुद को शांत रखना है, पहले खुद को सेफ करना है और फिर दूसरों की मदद करनी है, साथ ही अलग-अलग टाइप की फायर के लिए अलग-अलग एक्सटिंग्विशर यूज करने की जानकारी भी मिली।​

छात्राओं ने यह भी माना कि उन्होंने पहले किताबों में फायर सेफ्टी पढ़ रखी थी, लेकिन आज की मॉक ड्रिल के बाद यह नॉलेज लाइफटाइम के लिए मेमोरी बन गई है। एक स्टूडेंट ने बताया कि अब उन्हें ए, बी और इलेक्ट्रिकल फायर का फर्क समझ आ गया है और यह भी कि इलेक्ट्रिक फायर पर पानी डालने से करंट लगने का खतरा होता है, इसलिए फायर एक्सटिंग्विशर ही सही विकल्प होता है।​

टीचर्स ने भी इस अभ्यास को अपने लिए उतना ही जरूरी बताया, जितना बच्चों के लिए। एक टीचर ने कहा कि यहां सिर्फ थ्योरी नहीं, बल्कि “लर्निंग बाय डूइंग” पर जोर दिया जाता है, जिससे बच्चे जिम्मेदार सिटीजन बनते हैं और भविष्य में किसी भी बड़ी बिल्डिंग, इंडस्ट्री या दफ्तर में फायर सिचुएशन आने पर खुद को और अपने साथियों को सेफ कर सकें।​

स्कूल की प्रिंसिपल प्रवीण कौर ने कहा कि फायर सेफ्टी किताबों का चैप्टर भर नहीं होना चाहिए, बल्कि बच्चों को डिसिप्लिन के साथ इवैक्यूएशन, फायर कंट्रोल और इमरजेंसी रिस्पॉन्स की प्रैक्टिकल ट्रेनिंग मिलनी चाहिए। उन्होंने कहा कि प्रैक्टिकल तरीके से सीखी गई बातें लंबे समय तक नहीं भूलतीं और यही वजह है कि स्कूल मैनेजमेंट समय-समय पर ऐसी ड्रिल्स आयोजित करता रहेगा।​

फायर ऑफिसर सुधीर ने सेंट कबीर स्कूल की तैयारियों की सराहना करते हुए कहा कि यहां का अरेंजमेंट और मैनेजमेंट देखने लायक था और बच्चों का एक्टिव पार्टिसिपेशन उनकी एनर्जी बढ़ाने वाला रहा। उन्होंने बताया कि फायर डिपार्टमेंट एक इमरजेंसी सर्विस है, जिसे हर पल अलग-अलग तरह की सिचुएशन के लिए मेंटली और फिजिकली तैयार रहना पड़ता है, और ऐसे मॉक ड्रिल्स से स्कूलों के साथ कोऑर्डिनेशन भी मजबूत होता है।​

स्कूल के डेपुटी डायरेक्टर अंगद ने बताया कि इस बार ड्रिल को बड़े स्केल पर प्लान किया गया, जिसमें तीन मुख्य उद्देश्य थे – स्कूल इवैक्यूएशन ड्रिल की प्रैक्टिस, बच्चों को इमरजेंसी रिस्पॉन्स के लिए इक्विप करना और फायर डिपार्टमेंट को भी स्कूल के साथ रियल जैसी सिचुएशन का सिमुलेशन देना। उन्होंने कहा कि स्कूल सभी सेफ्टी नॉर्म्स के मुताबिक इक्विप्ड है और उम्मीद है कि ऐसी व्यवस्था सिर्फ ड्रिल तक ही सीमित रहे, वास्तविक हादसे की जरूरत कभी न पड़े, लेकिन अगर कभी ऐसी सिचुएशन बने तो यहां के बच्चे और स्टाफ तैयार रहेंगे।​

अंत में, रिपोर्टर ने दर्शकों से अपील की कि इस तरह की फायर मॉक ड्रिल्स के महत्व को समझते हुए अपने बच्चों और परिवार के सदस्यों तक भी यह सीख पहुंचाएं। उन्होंने कहा कि इमरजेंसी में सही वक्त पर लिया गया छोटा-सा कदम न केवल आपकी बल्कि कई और जिंदगियों को बचा सकता है, इसलिए इस तरह के जागरूकता कार्यक्रमों को ज्यादा से ज्यादा शेयर और सपोर्ट किया जाना चाहिए।

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