करनाल: उर्स मुबारक के मौके पर करनाल में आयोजित कव्वाली प्रोग्राम में सूफी–कव्वाली जगत के बड़े नाम रईस अनीस साबरी ने अपनी लाइव परफॉर्मेंस से माहौल को सूफियाना रंग में रंग दिया। सूफी कलाम, ख्वाजा–कलंदर की शान, गुरु–मुर्शिद की महिमा और जोशीली देशभक्ति से भरी उनकी पेशकशों पर मेहफिल देर तक झूमती रही और श्रोताओं ने बार–बार दाद देकर उन्हें सराहा।
ख्वाजा–कलंदर की शान में सूफियाना कलाम
कार्यक्रम की शुरुआत सूफियाना कलामों से हुई, जिनमें ख्वाजा और बू अली शाह कलंदर की शान बयान की गई। रईस अनीस साबरी ने अपने कलाम में कहा कि घर छोड़कर महफिल में आए हैं और “अब घर की जिम्मेदारी ख्वाजा के हाथ में है”, साथ ही यह भी कि ख्वाजा के आशिकों से जन्नत की बात मत करो, “जन्नत तो खुद बिचारी ख्वाजा के हाथ में है।”
बाद में उन्होंने “दमादम मस्त कलंदर”, “बू अली शाह कलंदर” और “लालों के लाल कलंदर” जैसे कलंदराना रंग से भरपूर कलाम पेश किए, जिन पर पूरा हुजूम झूमता और साथ में सुरीली तान छेड़ता नजर आया।
राम, गुरु और मुर्शिद – मेल–जोल का पैगाम
कव्वाली के बीच–बीच में रईस अनीस साबरी ने आध्यात्मिक संदेशों से भरे कलाम भी पेश किए, जिनमें राम–नाम की महिमा, गुरु–दर्शन और मुर्शिद द्वारा दिखाए रास्ते की बात की गई। उन्होंने कहा कि “राम के नाम में है शांति, इसको समझो”, और जो राम के नाम से मोहब्बत नहीं रखता, उसकी हालत हर तरह से बिगड़ी रहती है।
इसी क्रम में उन्होंने गुरु और मुर्शिद की अहमियत पर कलाम पढ़ते हुए कहा कि “गुरु बिन ज्ञान नहीं” और “गुरु को देखा कर” जैसे संदेशों के ज़रिए आध्यात्मिक गुरु को जीवन की रोशनी बताया।
कौमी एकता और हिंदुस्तान से मोहब्बत पर जोर
प्रोग्राम का सबसे बड़ा आकर्षण वह हिस्सा रहा, जब रईस अनीस साबरी ने कौमी एकता और देशप्रेम पर आधारित तराने पेश किए। उन्होंने शेरों और कलाम के ज़रिए कहा कि इंसान के ग़म में दूसरा इंसान तड़प उठे, “हिंदू का दिल दुखे तो मुसलमान तड़प उठे, हिंदूओं का दिल दुखे तो मुसलमान तड़प उठे” – यही असली मोहब्बत और इंसानियत का पैगाम है।
उन्होंने यह भी गाया कि “ये बंधन प्यार का टूटे किसे गवारा है, आपस में हम मिलकर यही मकसद हमारा है”, और हर हिंदुस्तानी की ज़ुबान से यह निकलना चाहिए कि “हमें मस्जिद भी प्यारी है, हमें मंदिर भी प्यारा है।”
“हिंदुस्तान हमारा” – बार–बार गूंजा देशभक्ति का तराना
रईस अनीस साबरी ने बीच में श्रोताओं से अपील की कि जो–जो हिंदुस्तान से मोहब्बत रखते हैं, वे हिंदुस्तान के लिए ज़ोरदार तालियां बजाएं और हाथ बुलंद करें। उन्होंने देशभक्ति से सराबोर कलाम में यह मिशरा दोहराया कि “ना लंदन–जापान से मतलब है हमको, ना पाकिस्तान से मतलब है हमको, इस धरती के बाशिंदा हैं हम, अपने हिंदुस्तान से मतलब है हमको।”
उन्होंने यह भी कहा कि हमारा ईमान और हदीस–ए–पाक सिखाती है कि जिस मुल्क में रहो, उस मुल्क से मोहब्बत करो, “हम अपने दिल के हर गोशे में हिंदुस्तान रखते हैं।” एक अन्य शेर में उन्होंने राम, कृष्ण, नानक और ख्वाजा की सरज़मीन को हिंदुस्तान की पहचान बताते हुए गाया कि “हर मुल्क से है प्यारा हिंदुस्तान हमारा।”
ख्वाजा–कलंदर की मेहफिल में शुक्रगुज़ारी का इज़हार
प्रोग्राम के अंत में रईस अनीस साबरी ने आयोजक महाराज जी और उनकी समिति का शुक्रिया अदा किया कि उन्हें इस उर्स मुबारक की महफिल में खिदमत और अपनी आवाज़ के ज़रिए सूफियाना–देशभक्ति संदेश फैलाने का मौका मिला। उन्होंने कहा कि यह पूरी प्रस्तुति “कौमी एकता तराना” लोगों तक पहुंचाने की कोशिश है और उम्मीद जताई कि श्रोता इसे अपने दिलों में जगह देंगे।
करनाल की इस उर्स–मेहफिल ने एक बार फिर साबित किया कि सूफी–कव्वाली सिर्फ साज़ और आवाज़ नहीं, बल्कि मोहब्बत, इंसानियत, भाईचारा और वतन–प्रेम का ज़रिया भी है, जहां मस्जिद–मंदिर से आगे उठकर सबके दिलों में सिर्फ हिंदुस्तान और इंसानियत की धड़कन बसती है।