विश्व शांति सेवा चेरिटेबल ट्रस्ट के तत्वाधान में हुड्डा ग्राउंड नंबर 1 सुपर मॉल, नजदीक हुड्डा कार्यालय, करनाल (हरियाणा) में कथा वाचक पूज्य श्री देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज के मुखारबिद से श्रीमद् भागवत कथा का आयोजन किया जा रहा है। कथा के तीसरे दिन भी हजारों की संख्या में भक्तों ने महाराज जी के श्रीमुख से कथा का श्रवण किया।
भागवत कथा के तीसरे दिन की शुरुआत भागवत आरती और विश्व शांति के लिए प्रार्थना के साथ की गई। देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज ने कथा की शुरुआत करते हुए कहा की जिस ईश्वर की कथा हम और आप श्रवण करते है, हम श्रवण करके उनके दिखाएं मार्ग पर चलते हैं, उनकी महिमा अपरमपार है, उनके करुणा के भंडार खुले हुए हैं लेकिन मिलता उन्ही को है जो उनके दर पर जाते हैं। महाराज जी ने कहा की मेरे मन मैं कौन बसा है जब तक ये भाव नहीं जगेगा तब तक वो हमें नहीं मिलेगा जो हम पाना चाहते हैं।
महाराज जी ने कहा की जब भगवान की कथा चल रही हो तो एक सेकेंड की भी कथा नहीं छोड़नी चाहिए ऐसा भाव मन में होना चाहिए। उन्होंने कहा की जो श्रीमद् भागवत देवताओं के लिए दुर्लभ हो गई वो कलयुग के प्राणियों के लिए सुलभ हो गई और ये सब भगवत कृपा से हुआ है। अब ये हम पर है की हमे इसका सदुपयोग करना है या दुरुपयोग, भगवान ने कृपा करके हमे दे दिया है अब हम इसे कितना ले सकते हैं वो हम पर निर्भर करता है।
देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज जी ने कहा कथा सुनने आएं श्रोताओं से पूछा की क्या कभी आपने जिंदगी कैसे जीनी चाहिए इसकी योजना बनाई है। आपने घर कैसे बनाए, मोबाइल कौन सा हो, काम क्या करना है ये सब योजना बनाई है लेकिन जिंदगी कैसे जीनी चाहिए इसकी योजना बनाई है, अगर नहीं बनाई तो आज ही इस योजना पर काम करना शुरु कर दो। आपको अपनी जिंदगी में क्या करना है ये सोचिए, आप कुछ योजना बनाओ ना बनाओ लेकिन ये योजना जरुर बनाओ की मुझे कृष्ण की कृपा मिले, अगर आपको कृष्ण की कृपा मिल गई तो फिर पुरी दुनिया आपके लिए बददुआ भी करें तो क्या फर्क पड़ता है।
महाराज जी ने कहा की भारत का विकास मदिरा पीकर नहीं हो सकता, मदिरा बेच कर नहीं हो सकता, भारत का विकास चरित्रवान होकर हो सकता है, जो चरित्रवान होगा वहीं विकास करेगा।
देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज ने कथा का वृतांत सुनाते हुए कल का कथा क्रम याद कराया की जी वयक्ति को यहाँ पता चल जाये की उसकी मृत्यु सातवें दिन हो वो क्या करेगा क्या सोचेगा ? राजा परीक्षित ने यह जान कर उसी क्षण अपना महल छोड़ दिया। पर आज तो आपको यह भी नहीं मालूम की आपकी मृत्यु कब होगी , मृत्यु तो निश्चित है पर कब ये आपको नहीं पता तो आप जीवित रहते हुए अपने समय को क्यों बर्बाद करते हो। मानव जीवन सबसे श्रेष्ठ है क्योकि इसमें हमे नाम सुमिरन करने का मार्ग उपलब्ध होता है अन्य किसी योनि में नहीं मिलता। तो इस मानव जीवन का मोल पहचाने और इसको प्रभु के चरणों में सोप दे तो कल्याण निश्चित ही होगा। भगवान अपने बारे में मानव से हुई भूल को तो भुला सकते हैं लेकिन संतों को लेकर की गई भूल के दुष्परिणाम से वह भी नहीं बचाते। इसका उदाहरण है कि राजा परीक्षित ने जब संत का अपमान किया तो राजा परीक्षित को भी काल के काल में जाने के लिए छोड़ दिया।
राजा परीक्षित ने अपना सर्वस्व त्याग कर अपनी मुक्ति का मार्ग खोजने निकल पड़े गंगा के तट पर। जब राजा परीक्षित भगवान शुकदेव जी महाराज के सामने पहुंचे तो उनको राजा ने शाष्टांग प्रणाम किया। शाष्टांग प्रणाम करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। शुकदेव जी महाराज जो सबसे बड़े वैरागी है चूड़ामणि है उनसे राजा परीक्षित जी ने प्रश्न किया कि हे गुरुदेव जो व्यक्ति सातवें दिन मरने वाला हो उस व्यक्ति को क्या करना चाहिए? किसका स्मरण करना चाहिए और किसका परित्याग करना चाहिए? कृपा कर मुझे बताइये…
अब शुकदेव जी ने मुस्कुराते हुए परीक्षित से कहा की हे राजन ये प्रश्न केवल आपके कल्याण का ही नहीं अपितु संसार के कल्याण का प्रश्न है। तो राजन जिस व्यक्ति की मृत्यु सातवें दिन है उसको श्रीमद भागवत कथा का श्रवण करना चाहिए तो उसका कल्याण निश्चित है। श्रीमद भागवत में 18000 श्लोक, 12 स्कन्द और 335 अध्याय है जो जीव सात दिन में सम्पूर्ण भागवत का श्रवण करेगा वो अवश्य ही मनोवांछित फल की प्राप्ति करता है। राजा परीक्षित ने शुकदेव जी से प्रार्थना की हे गुरुवर आप ही मुझे श्रीमद भागवत का ज्ञान प्रदान करे और मेरे कल्याण का मार्ग प्रशस्थ करे।
भगवान मानव को जन्म देने से पहले कहते हैं ऐसा कर्म करना जिससे दोबारा जन्म ना लेना पड़े। मानव मुट्ठी बंद करके यह संकल्प दोहराते हुए इस पृथ्वी पर जन्म लेता है। प्रभु भागवत कथा के माध्यम से मानव का यह संकल्प याद दिलाते रहते हैं। भागवत सुनने वालों का भगवान हमेशा कल्याण करते हैं। भागवत ने कहा है जो भगवान को प्रिय हो वही करो, हमेशा भगवान से मिलने का उद्देश्य बना लो, जो प्रभु का मार्ग हो उसे अपना लो, इस संसार में जन्म-मरण से मुक्ति भगवान की कथा ही दिला सकती है। भगवान की कथा विचार, वैराग्य, ज्ञान और हरि से मिलने का मार्ग बता देती है। राजा परीक्षित के कारण है भागवत कथा पृथ्वी के लोगो को सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। समाज द्वारा बनाए गए नियम गलत हो सकते हैं किंतु भगवान के नियम ना तो गलत हो सकते हैं और नहीं बदले जा सकते हैं।
कथा का आयोजन विश्व शांति सेवा चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा किया जा रहा है। कथा पंडाल में कई गणमान्य अतिथियों ने अपनी गरिमामयी उपस्थिती दर्ज करवाई ।