करनाल/कीर्ति कथूरिया : तीर्थस्थल श्री आत्म मनोहर जैन आराधना मंदिर में अक्षय तृतीया तथा वर्षी तप पारणा महोत्सव हर्षोल्लास तथा उत्साहपूर्वक भारत संत गौरव उपप्रवर्तक श्री पीयूष मुनि जी महाराज के सान्निध्य में मनाया गया।
सुधा जैन, पवन जैन के भजन के पंक्तियों आया अक्षय तृतीया पर्व महान, जय-जय ऋषभदेव भगवान तथा नाम है जिनका तारणहारा कब उनका दर्शन होगा जिनकी प्रतिमा इतनी सुंदर कब उनका दर्शन होगा, जयकारा जयकारा बोलो सभी शुद्ध मन से भक्ति भाव से देवाधिदेव की महिमा को आज है गाना रसना को पावन सभी ने बनाना ने सभी को तरंगित किया।
मुनि संयमेश, साध्वी जागृति, साध्वी समृद्धि ने भगवान ऋषभदेव के वर्षी तप के संबंध में प्रेरक भक्ति गीत प्रस्तुत किए। महासाध्वी श्री प्रमिला तथा महासाध्वी श्री मीना ने अक्षय तीज के महत्व के साथ भगवान ऋषभदेव के जीवनवृत्त, साधना काल तथा वर्ष भर की लंबी तपस्या के पश्चात अक्षय तीज पर तप पूर्णाहुति का सविस्तार विवेचन किया।
सर्व धर्म दिवाकर श्री पीयूष मुनि जी महाराज ने अपने उद्बोधन में कहा कि अक्षय तृतीया भारतीय परंपरा का सांस्कृतिक त्यौहार है जो आध्यात्मिक भावनाओं और संस्कारों को जगाता है।
भारतीय ज्योतिष के हिसाब से तिथियां चंद्रमा तथा नक्षत्रों के गति के अनुसार बनती हैं चंद्रकला की तरह तिथियां भी घटती-बढ़ती रहती हैं परंतु अक्षय तीज आज तक हजारों वर्षों में भी कभी नहीं घटी।
तीन का अंक कितनी बार गुणा करके घटाए जाने पर फिर अपने मूल रूप में आ जाता है, उससे घटता नहीं। वैदिक परंपरा के अनुसार जमदाग्नि के पुत्र परशुराम का जन्म तथा सतयुग का प्रारंभ अक्षय तृतीया को हुआ था। इस दिन किए जाने वाले दान-तप आदि पुण्य कार्यों का फल अक्षय होता है।
यह अनपुछ मुहूर्त है जिसके लिए ज्योतिषी से परामर्श लेने की आवश्यकता नहीं होती और गृह-प्रवेश, विवाह संस्कार, नव कार्य शुभारंभ किया जाता है। इस अवसर्पिणी कल के पहले तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव ने सभ्यता-संस्कृति का निर्माण करते हुए असि-मसि-कृषि- व्यापार-वाणिज्य कर्म का उपदेश दिया परंतु भिक्षार्थ जाने पर साधु-चर्या से परिचित न होने के कारण जनसाधारण उन्हें मर्यादा के अनुकूल भोजन-पानी उपलब्ध कराने की बात नहीं सोच पा रहे थे।
तेरह महीने दस दिन बीत जाने पर हस्तिनापुर में उन्हीं के पड़पौत्र युवराज श्रेयांशकुमार ने पूर्व जन्मों का ज्ञान हो जाने पर प्रासुक गन्ने का रस बहराकर कर उनका पारणा कराया। उसी परंपरा का अनुपालन करते हुए वर्तमान में भी चैत्र कृष्णा अष्टमी से वैशाख शुक्ल तृतीया तक एकांतर व्रत, आयंबिल, एकाशना करते हुए वर्षी तप किया जाता है क्योंकि वर्तमान में न्यून शारीरिक शक्ति के कारण निरंतर वर्ष भर तक निराहार तथा निर्जल रहना संभव नहीं है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता अश्वनी जैन (रजनी एग्रो ऑयल, लाडवा) ने की। समाजसेवी लाला सोहन लाल गुप्ता, घरौंडा मुख्य अतिथि रहे। ध्वजारोहण नवकार ट्रेडर्ज, दिल्ली के राकेश जैन ने किया।
अरिहंत डिपार्टमेंटल स्टोर, रायकोट के धर्मवीर जैन ने भगवान ऋषभदेव दरबार का अनावरण किया। प्रीतिभोज की सेवा चेतन लाल जैन (गणेश भट्ठा, करनाल) की ओर से रही। गन्ने का रस प्रसाद रूप में धूमचंद चाय वालों के सौजन्य से बांटा गया। कांधला, अंबाला, दिल्ली, हिसार, पानीपत, घरौंडा, चंडीगढ, जीरकपुर के श्रद्धालु उपस्थित रहे।