November 22, 2024

श्री दिगम्बर जैन सोसाईटी रजि. करनाल में महापर्व पर्यूषण (दस लक्षण पर्व) के उपलक्ष में पण्डित श्री भागचन्द जैन ने तप धर्म के सम्बन्ध में परम पूूज्य मुनि श्री प्रमाण सागर जी के उद्बोधन का उल्लेख करते हुए बताया कि ‘तप’ वह प्रबल पुरुषार्थ है जो कि प्रतिकूल वातावरण में मन, वचन और काय को शान्ति तथा समता में बनाए रखता है। तप से आत्मा की भाव-विशुद्धि होती है। कर्मों की निर्जरा होती है। चेतना में निखार आता है।

तप तीन प्रकार से किया जा सकता है यथा : प्रथम शारीरिक तप। इसमें उपवास, अनशन, एकासना करना, एक स्थान-दशा में बैठे, लेटे अथवा खड़े रहना आदि आता है। इसमें शरीर को हो रहे कष्ट को हर्ष और आनन्द से समतापूर्वक सहन किया जाता है। दूसरा तप है ‘वाणी तप’। जो व्यक्ति शारीरिक तप करने में सक्षम नहीं है वह वाचना अर्थात वाणी में संयम धारण करके किसी के कठोर वचनों को बिना विरोध किए चुपचाप सह लेते हैं।

अपने मुख अथवा भावों से किसी को कठोर अथवा अमर्यादित शब्द नहीं कहते। क्रोध का कारण आने पर भी क्रोध नहीं करते तथा सीमित, मधुर तथा सार्थक वचन ही बोलते हैं। तप का तीसरा प्रकार है मानसिक तप। मानसिक तप बहुत कठिन होता है इसके अधीन हार-जीत, लाभ-हानि, अनुकूल-प्रतिकूल, संयोग-वियोग सभी परिस्थितियों में अपने मन को स्थिर रखा जाता है। गृहस्थ जीवन में मानसिक तप को धारण करना अत्यंत कठिन होता है। किसी भी विरोध के कारण गृहस्थी जीव भोजन का त्याग कर देता है जबकि त्याग भोजन का नहीं क्रोध का करना होता है।

तप कभी भी भौतिक उपलब्धि के लिए नहीं करना चाहिए बल्कि अपने शरीर की मलिनता को दूर करने के लिए किया जाना चाहिए। तप द्वारा शरीर के अन्दर विराजमान आत्मा के रासायनिक तत्वों में परिवर्तन होता है इससे आत्मा में निर्मलता आती है। तप ठीक उसी प्रकार होता है जैसे कि दूध को गर्म करने के लिए पहले बर्तन गर्म होता है फिर दूध गर्म होकर शुद्ध होता है। ठीक इसी प्रकार शरीर के तप जाने पर वहां विराजमान आत्मा शुद्ध परमात्मा बनती है।

आज श्री आशु जैन का निराहार उपवास तप (पूर्ण रूप से किसी भी प्रकार के भोजन फल आदि का त्याग) का सातवां दिवस है। उन्होंने तप धर्म पर प्रतिदिन की भांति आज भी भगवान की प्रतिमा पर शान्तिधारा का सौभाग्य प्राप्त किया तथा श्रीमती प्रियांग सुंदरी जैन, श्रीमती सविता जैन, सर्वश्री सुमित जैन, कुशल जैन, अमित जैन, अनिल जैन, आयूष जैन, अंकुर जैन, अजय जैन, रजत जैन, विपिन जैन, मनीष जैन आदि ने भी पुण्य लाभ प्राप्त किया। इस अवसर पर लगभग 140 भक्तजन श्री मंदिर जी में उपस्थित रहे।

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