करनाल क्लब करनाल में कारवाने अदब करनाल की महफिल सजी। जिसमें करनाल तथा आसपास से पधारे कवियों, शायरों तथा सहित्यकारों ने शिरकत की। महफिल के आगाज से पहले सभी ने राष्ट्रगान गाकर देश में आपसी भाईचारा कायम होने तथा सुख-समृद्धि की कामना की। आज की महफिल की अध्यक्षता गिरधारी लाल शर्मा ने की तथा विशिष्ट अतिथि केदारनाथ पाहवा तथा राजेन्द्र नाथ शर्मा रहे, मंच संचालन कवि भारत भूषण वर्मा ने किया।
महफिल की शुरूआत डॉ. एस.के. शर्मा ने भीग जाती हैं जो पलके कभी तन्हाई में, कांप उठता हूं मेरा दर्द कोई जान न ले से की, अंजु शर्मा ने कहा राज सब के आईना अब खोलने लगा है चाहे बेवफा कहो, पर अब वो बोलने लगा है, सुरेन्द्र मरवाहा ने कहा जिन्दगी ये मेरी कुछ यूं सवार है मुझ पर, डूबी भी मेरी और पार भी मेरी, जीत भी मेरी और हार भी मेरी, भारत भूषण वर्मा ने कहा सत्ता में सादगी हो, भारत में प्यार हो, नफरत नारजगी का ना कोई शिकार हो, जय दीप सिंह तुली ने कहा रक्त की धार से मेरे वतन की बात हो जाए, वतन ही धर्म हो मेरा वतन ही जात हो जाए।
गिरधारी लाल शर्मा ने कहा उनकी आँखों में कटी थी सदिया, उसने सदियों की जुदाई दी है, सुभाष मेहर चन्द ने कहा माँ तू किथे, देख तेरे बाल तेरे इन्तजार विच हैगे तेनू याद करदे हां, एच.डी. मदान ने कहा तेरे खश्बू से भरे खत मैं जलाता कैसे, समयनियता चौधरी ने कहा देखते ही देखते बिक गए बाजार से सारे झूठ, हम और वो अपनी सादगी लिए शाम तक बैठे रहे। अशोक विशिष्ट ने कहा जब तक हवाओं में मौसम बेजूंबा होगा, होठों पर हसी होगी दिल में धूंआ होगा।
परवीन जन्नत ने कहा काश मेरा भी कोई होता, मैं कभी बेबसी के बोझ ना ढोता। साबिर खान ने कहा दिन वो भी क्या थे जब हम अपने देश में रहते थे, अपनी मिट्टी की खश्बु के प्रवेश में रहते थे। राजेन्द्र शर्मा ने कहा प्यारे बच्चों तुम हो कल के भारत के भाग्य विधाता, रचोगे तुम ही दुलारो राष्ट्र निर्माण की गौरव गाथा।