करनाल जिले के बीज और खाद विक्रेताओं ने आज अपनी गंभीर समस्याओं को लेकर कृषि विभाग का दरवाजा खटखटाया। जिले भर की 18 मंडियों से आए सैकड़ों दुकानदारों और ‘जिला फर्टिलाइजर, पेस्टिसाइड और सीड ट्रेड एसोसिएशन’ के पदाधिकारियों ने उप निदेशक कृषि (डीडीए) को एक ज्ञापन सौंपा। विक्रेताओं का मुख्य आरोप है कि खाद निर्माता कंपनियां और थोक विक्रेता उन्हें खाद की आपूर्ति के साथ जबरन अन्य उत्पाद और दवाइयां खरीदने पर मजबूर कर रहे हैं।
एसोसिएशन के अध्यक्ष रामकुमार गुप्ता ने बताया कि खाद की कमी का फायदा उठाकर बड़ी कंपनियां और थोक विक्रेता ऐसे उत्पाद दुकानदारों को थमा रहे हैं जिनकी बाजार में कोई मांग नहीं है। इन थोपे गए उत्पादों की कीमत वास्तविक बाजार मूल्य से चार गुना अधिक होती है। उदाहरण के तौर पर, जिस दवा की लागत ₹20 होती है, उसे विक्रेताओं को ₹100 में दिया जा रहा है। जब दुकानदार ये उत्पाद किसानों को बेचने का प्रयास करते हैं, तो किसान इन्हें लेने से मना कर देते हैं, जिससे किसानों और दुकानदारों के बीच वर्षों पुराने संबंध खराब हो रहे हैं।
विक्रेताओं ने स्पष्ट किया कि खाद के बिना उनकी दुकानदारी नहीं चल सकती और इसी मजबूरी का फायदा उठाकर थोक विक्रेता उन पर 75 हजार से लेकर 1 लाख रुपये तक के अनावश्यक उत्पाद थोप देते हैं। स्थिति इतनी गंभीर हो चुकी है कि करीब 150 दुकानदारों ने काम छोड़ने तक की चेतावनी दी है। दुकानदारों का कहना है कि वे किसानों के साथ धोखाधड़ी नहीं करना चाहते, क्योंकि वे जानते हैं कि ये अतिरिक्त उत्पाद किसानों के लिए न तो हितकारी हैं और न ही प्रभावी।
पूर्व में भी इस तरह की शिकायतें की गई थीं, जिसके बाद विभाग ने कुछ कंपनियों की बिक्री पर रोक लगाई थी, लेकिन समस्या का स्थायी समाधान नहीं निकल पाया है। विक्रेताओं की प्रमुख मांग है कि खाद की आपूर्ति को पूरी तरह स्वतंत्र रखा जाए और इसके साथ किसी भी प्रकार की टैगिंग या अन्य उत्पादों की जबरन बिक्री पर तत्काल रोक लगाई जाए। यदि कोई कंपनी या थोक विक्रेता ऐसा करता है, तो उसके खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए। दुकानदारों ने चेतावनी दी है कि यदि जल्द ही इस समस्या का समाधान नहीं हुआ, तो वे अपना विरोध प्रदर्शन और तेज करेंगे। कृषि विभाग के अधिकारियों ने ज्ञापन स्वीकार करते हुए उचित कार्रवाई का आश्वासन दिया है।