करनाल के कर्ण स्टेडियम में इन दिनों खेल के प्रति एक नई उमंग और जज्बा देखने को मिल रहा है। कड़ाके की मेहनत और अनुशासन के साथ, नन्हे खिलाड़ी अपने भविष्य को खेलों में संवारने के लिए भारी-भरकम वजन उठा रहे हैं। यहाँ का माहौल बच्चों की मेहनत और कोच के मार्गदर्शन से ऊर्जावान बना हुआ है, जहाँ हर खिलाड़ी की आँखों में तिरंगा लहराने का सपना साफ झलकता है।
स्टेडियम में अभ्यास करने वाली लड़कियों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है। ये बेटियाँ रोजाना तीन से चार घंटे कड़ा अभ्यास करती हैं और मीराबाई चानू जैसी दिग्गज वेटलिफ्टर्स को अपना आदर्श मानती हैं। अभ्यास के दौरान खिलाड़ी केवल शारीरिक प्रशिक्षण ही नहीं लेते, बल्कि अपने मानसिक दृढ़ता पर भी काम करते हैं। खिलाड़ियों का मानना है कि अब समय बदल चुका है और लड़कियों को भी लड़कों के बराबर, बल्कि उनसे भी अधिक पारिवारिक और सामाजिक समर्थन मिल रहा है।
शिक्षा और खेल के बीच संतुलन बनाना इन खिलाड़ियों के लिए एक बड़ी चुनौती है, जिसे वे बखूबी निभा रहे हैं। कई खिलाड़ी सुबह स्कूल जाने से पहले स्टेडियम पहुँचते हैं और फिर स्कूल से लौटने के बाद दोबारा अभ्यास सत्र में शामिल होते हैं। उनका कहना है कि शुरुआत में यह थोड़ा बोझिल लग सकता है, लेकिन जब लक्ष्य ओलंपिक पदक जैसा बड़ा हो, तो हर कठिनाई छोटी लगने लगती है। परिवार वालों का 100% समर्थन इन नन्हे कंधों को और अधिक मजबूती प्रदान कर रहा है।
अभ्यास सत्रों में उतार-चढ़ाव आना स्वाभाविक है, जिसे खिलाड़ी खेल का एक हिस्सा मानते हैं। कई बार थकान और निराशा महसूस होने के बावजूद, अपने सपनों को साकार करने की जिद उन्हें दोबारा मैट पर लौटने के लिए प्रेरित करती है। ये बच्चे न केवल स्थानीय प्रतियोगिताओं में भाग ले रहे हैं, बल्कि उनकी नजरें अब अंतरराष्ट्रीय मंच पर पदक जीतकर देश का गौरव बढ़ाने पर टिकी हैं। कोच और अभिभावकों के अटूट विश्वास के साथ, करनाल के ये खिलाड़ी भविष्य के चैंपियन बनने की राह पर अग्रसर हैं।