राष्ट्रीय डेरी अनुसंधान संस्थान के फिजियोलॉजी विभाग द्वारा पशु उत्पादन पर अत्यधिक तापमान के प्रभाव को नष्ट करने की रणनीति तैयार करने के लिए एक गोष्ठी का आयोजन किया गया। निकरा प्रोजेक्ट के तहत आयोजित इस गोष्ठी में देश के विभिन्न प्रांतों से आए करीब 40 वैज्ञानिकों ने भाग लिया और विपरीत वातावरणीय परिस्थितियों में दुग्ध-उत्पादकता को प्रभावित किए बिना, किस प्रकार से सफलतापूवर्क पशुपालन किया जाए, इस विषय पर मंथन किया। संस्थान के निदेशक डा. आरआरबी सिंह ने सभी प्रतिभागियों का स्वागत किया और कहा कि तेजी से हो रहे पर्यावरण परिवर्तन एवं बढ़ते हुए तापमान का पशुधन उत्पादन पर विपरित प्रभाव पड़ रहा है, जिस पर तुरंत संज्ञान लेने की जरूरत है। इसके लिए सबसे पहले क्षेत्र के हिसाब से फीड एवं फोडर की उपलब्धता सुनिश्चित की जाए तथा दूसरा पशुओं के आवास को ईको फ्रैंडली बनाए जाए, ताकि बदलते मौसम का पशुओं की उत्पादकता पर कम असर पड़े।
संयुक्त निदेशक अनुसंधान डा. बिमलेश कहा कि पशुओं के स्वास्थ्य पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने के लिए जागरूकता कार्यक्रम एवं उपयुक्त नीतियां होनी चाहिए। पशु शरीर क्रिया विज्ञान विभाग के अध्यक्ष डा. महेंद्र ङ्क्षसह ने कहा कि पशुओं को एग्रो क्लाईमेट जोन के हिसाब से पोषण व शैल्टर व्यवस्था करने की आवश्यकता है। वहीं हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय से आए डा. रविंद्र कुमार ने हिमाचल प्रदेश के मौसम में गत 30 वर्षो से आए परिवर्तन के विषय में बोलते हुए कहा कि पशु पालक इन विषम परिस्थितियों में ओर्गेनिक दूध, मांस, रेशे, घरेलू पोल्ट्री, ओर्गेनिक खाद व पशुओं की बोझा ढोने की क्षमता ाका उपयोग करते हुए अपनी आमदमी बढ़ा सकते हैं।
केंद्रीय पक्षी अनुसंधान संस्थान इज्जत नगर बरेली से आए डा. जगमोहन ने बताया कि ग्रामीण क्षेत्रों में होने वाले मुर्गी पालन से उत्पादित होने वाले अंडे, कुल उत्पादन का लगभग 30 प्रतिशत है तथा उष्मीय तनाव के कारण लगभग 6.4 प्रतिशत अंडों की पैदावार कम होती है। उल्लेखनीय है कि अधिक तापमान के कारण मुर्गियों की रोग-प्रतिरोध प्रणाली कमजोर होती है तथा तनाव ग्रस्त होने के कारण इनकी उत्पादन क्षमता में गिरावट आ जाती है। उन्होंने बताया कि गर्मियों में मुर्गियों को तनाव एवं अंडों के पतले होने के कारण अत्यधिक आर्थिक हानि होती है। डा. जगमोहन ने अंत में बेहतर खान-पान, आवास, प्रकश, एवं पेय-जल व्यवस्था प्रबंधन द्वारा गर्मी के प्रभाव को कम करने के तरीके भी सुझाए।
केंद्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान से आए डा. सैय्यद मोहम्मद खुर्शीद नकवी ने गर्म एवं शुष्क वातावरण में भेड़ों की उत्पादकता को बनाए रखने के लिए बेहतर आवास, पोषण, प्रजनन, एवं मार्केटिंग, प्रबंधन अपनाए जाने पर जोर दिया। इसके अलावा केंद्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान जोधपुर से आए डा. बीके माथुर ने राजस्थान के शुष्क क्षेत्रों में पशुधन पर पडऩे वाले पर्यावर्नीय दुष्प्रभावों का जिक्र करते हुए कहा कि इन्हें बेहतर पशु स्वास्थ कार्यक्रम, चरागाह संरक्षण, संपूरक आहार, उन्नत आवास एवं पेय जल प्रबंधन द्वारा कम किया जा सकता है।
एनआईवीडीआई बैंगलुरु से आए डा. केपी रमेश ने वैज्ञानिक अनुसंधान में मॉडलिंग एवं सिमुलेशन के महत्व पर प्रकाश डाला। जलवायु परिवर्तन पर आयोजित इस विचार विमर्श गोष्ठी में डा. आरएम लुदरी, डा. महेंद्र सिंह, डा. चक्रवर्ती, डा. आईडी गुप्ता, डा. अंजली अग्रवाल, डा. एके गुप्ता सहित अन्य वैज्ञानिकों ने अपने विचार रखें।