कल्पना चावला राजकीय मेडिकल कॉलेज में ब्लड टेस्ट कराने के लिए मरीजो को तीन से चार दिनों तक चक्कर काटने पड़ रहे हैं। इस लिए हर रोज मरीजों की सिक्योरिटी गार्ड व ब्लड सेंपल लेेने वाले कर्मियों के साथ बहस होती है। मरीजों को इतनी परेशानी बीमारी से नहीं होती जितनी मेडिकल कॉलेज में इलाज कराने के लिए हो रही है।
जैसे-जैसे गर्मी बढ़ रही है वैसे-वैसे मरीजों की संख्या भी बढ़ रही है और उनकी परेशानी भी। मेडिकल कॉलेज में एक दिन में 500 से ज्यादा मरीजों को ब्लड टेस्ट के लिए लिखा जाता है, लेकिन करीब 200 मरीजों के ही ब्लड का सेंपल एक दिन में लिया जाता है वो भी दोपहर 12ः30 बजे तक।
इसके बाद किसी भी मरीज का सेंपल नहीं लिया जाता और उस मरीज को अगले दिन आना पड़ता है। इस लिए मरीजों को बार-बार ब्लड टेस्ट के लिए मेडिकल कॉलेज के चक्कर काटने पड़ते हैं और फिर तीन दिन बाद रिपोर्ट लेने के लिए भी आना पड़ता है।
मरीज परेशान होकर प्राइवेट लैब पर जाकर ब्लड टेस्ट कराते हैं, जिन्हें कई्र बार डॉक्टर नहीं मानता। इस कारण मरीजों में मेडिकल कॉलेज प्रशासन के खिलाफ रोष बढ़ता जा रहा है। कोई कई बार मरीज डायरेक्टर कार्यालय में कार्यवाहक निदेशक से मिल चुके हैं। लेकिन फिर भी हालात ज्यों के त्यों है।
मेडिकल कॉलेज प्रशासन का कहना है कि लैब केडरों की कमी के कारण मरीजों को परेशानी हो रही है। लेकिन मरीजों का कहना है कि मेडिकल कॉलेज प्रशासन ब्लड सेंपल का टाइम तो बढ़ा सकते हैं। लैब केडर की हैं 88 पोस्ट, 25 ही हैं भरी हुई मेडिकल कॉलेज में लैब केडर की 88 टोटल पोस्ट है।
लेकिन इनमें से 25 पोस्ट ही भरी हुई है। इसी कारण मरीजों को ब्लड टेस्ट की रिपोर्ट तीन दिन बाद मिलती है और मेडिकल कॉलेज में 12ः30 बजे तक ब्लड के सेंपल लिए जाते हैं। तीन दिन बाद मिलती है रिपोर्ट मेडिकल कॉलेज में मरीज द्वारा सेंपल देने के तीन दिन बाद उन्हें रिपोर्ट मिलती है। ऐसे में मरीज को रिपोर्ट लेने के लिए दोबारा किराया लगाकर मेडिकल कॉलेज आना होता है और फिर डॉक्टरों को वह रिपोर्ट दिखानी होती है।
दोपहर को लगाया सेंपल लेने का समय मरीजों द्वारा कर्मचारियों से बहस करने के बाद मेडिकल कॉलेज के कर्मचारियों ने वहां पर सेंपल लेने का समय का पर्चा लगाया। इससे पहले वहां ब्लड सेंपल लेने का निर्धारित समय नहीं लिखा हुआ था। जिस कारण मरीज कर्मचारियों से बहस कर रहे थे।
ये है स्थिति –
ओपीडी का समय है सुबह सात बजे से दो बजे तक।
- – टोकन लेने का समय 12ः30 बजे तक।
- – ब्लड टेस्ट के लिए आते हैं करीब 500 मरीज।
- – ब्लड सेंपल लिया जाते हैं 12ः30 बजे तक।
- – 12ः30 बजे तक करीब 200 मरीजों के ही लिए जाते हैं ब्लड सेंपल
अपने जानकारों के ही लेते हैं सबसे पहले ब्लड सेंपल
आहूं गांव से आए बुजुर्ग कृष्ण लाल ने बताया कि वह पिछले दो दिनों से वह मेडिकल कॉलेज में ब्लड टेस्ट कराने के लिए आ रहा हूं, सुबह वह लाइन में लगता है और जब उसका नंबर आता है तो कहते हैं कि समय पूरा हो गया।
ब्लड सैंपल वाले व सिक्योरिटी गार्ड अपने जान पहचान वालों का ब्लड टेस्ट पिछले गेट से करा देते हैं और बाकि के मरीज लाइन में लगे रहते हैं मेडिकल कॉलेज मे इलाज कराने के लिए खाने पड़ते हैं धक्के कौल गांव निवासी सुमित ने बताया कि मेडिकल कॉलेज में इलाज कराने के लिए धक्के खाने पड़ते हैं।
इससे अच्छा तो मरीज उधार में पैसे लेकर प्राइवेट अस्पताल में ही इलाज करा ले। वह दो दिन से ब्लड टेस्ट के लिए लाइन में लगता है, जब उसका नंबर आता है तो कहते हैं समय हो गया। ऐसे में उसकी बीमारी ओर बढ़ती जा रही है।
जानबूझकर करते हैं मरीजों को परेशान, ताकि प्राइवेट लैब में कराए टेस्ट
आहूं गांव के मरीज ओमप्रकाश ने कहा कि मेडिकल कॉलेज में जानबूझकर मरीजों को परेशान किया जाता है। ताकि मरीज तंग होकर प्राइवेट लैब पर ही टेस्ट कराए। क्योंकि ऐसा किसी अस्पताल में नहीं है कि ब्लड टेस्ट करने के बाद तीन दिन में रिपोर्ट मिलेगी। इससे पहले ब्लड सेंपल देने के लिए कई दिनों तक मेडिकल कॉलेज के चक्कर काटो।
यह तो नाम का मेडिकल कॉलेज है, इलाज के लिए नहीं सुुभाष गेट निवासी महिला क्षमा ने कहा कि यह तो नाम का मेडिकल कॉलेज है यहां इलाज नहीं होता। वह अपनी बेटी का ब्लड टेस्ट कराने के लिए पिछले पांच दिनों से आ रही हूं, लेकिन हर बार वह लाइन में लगती हूं, लेकिन उसका नंबर ही नहीं आता, मेडिकल कॉलेज के कर्मचारी अपने पहचानवालों का पहले ब्लड टेस्ट कराते हैं।
दो दिनों से पानीपत से आती हूं किराया देकर पानीपत निवासी भगवानी ने बताया कि वह दो दिनों से पानीपत से आ रही है लेकिन उसका ब्लड टेस्ट ही नहीं हो पाता। हर रोज वह किराए दे रही है। पैसे न होने के कारण ही तो वह मेडिकल कॉलेज में इलाज के लिए आई था मेडिकल कॉलेज में लैब टेक्नीशियनों की कमी है और इनकी भर्तियों पर कोर्ट से स्टे लगा हुआ है।
स्टाफ की कमी के कारण मरीजों को परेशानी आ रही है। जैसे की स्टाफ पूरा होगा तो यह समस्या दूर हो जाएगी। इसके लिए प्रयास किए जा रहे हैं। डॉ. हिमांशु मदान, कार्यवाहक निदेशक, कल्पना चावला राजकीय मेडिकल कॉलेज करनाल।