December 25, 2024
11-JAN-11

दिव्यांगों में जीने की आस जगायेगी रीतेश की एप , लॉकडाउनक के दौरान चार महीने की मेहनत से बनाई एप ,देखें पूरी खबर

  • लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में करा चुके हैं पहले नाम ,अब इंडिया बुक ऑफ रिकार्ड्स ने भी दिया करनाल निवासी रितेश सिन्हा को प्रमाण पत्र
  • जिला करनाल कोर्ट में करते हैं कंप्यूटर ऑपरेटर का काम , सेरेब्रल पॉल्सी का अर्थ बदल कैपेबल पर्सन
  • करनाल जब इंसान के हौसलें बुलंद होते हैं तो उसकी दिव्यांगता उसके आड़े नहीं आती। वह बिना पांव के भी कामयाबी की ओर बढ़ता चलता जाता है।
  • यह करनाल सेक्टर-13 निवासी रीतेश सिंहा ने सीध कर दिखाया है।

रीतेश सिंहा को सेरेब्रल पाल्सी ( एक ऐसा व्यक्ति जिसका दिमाग काम करता है लेकिन वह अपने शरीर के अंगों को नियंत्रित नहीं कर सकता) से पीड़ित है। उन्होंने कोरोना कॉल के दौरान लगे लॉकडाउन में अल्टरनेटिव थेरेपी फॉर सेरेब्रल पाल्सी एप बनाई है। जो सभी दिव्यांगों में जीने की आस जायेगी साथ ही उन्हें हौसलों की उडान भरने के लिये पर भी देगी।

इस एप में उन्होंने दिव्यांगता पर जीत पाने के लिये अलग अलग थेरेपी दिखाई हुई है और साथ ही अपने जीवन से जुड़ी अनेकों गतिविधियों की वीडियों भी अपलोड़ की है ताकि सेरेब्रल पाल्सी से ग्रस्त व्यक्ति उस वीडियों को देखें और उनके अंदर कुछ करने का जज्बा जागे। इस एप के बनाने पर इंडिया बुक ऑफ रिकार्ड की ओर से उन्हें प्रमाण पत्र दिया गया है। 2022 में इंडिया बुक ऑफ रिकार्ड में उनकी एप दर्ज होगी। इससे पहले उन्होंने क्षमता परीक्षण में सफलता पाकर लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में अपना नाम दर्ज करवाया हुआ है।

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जिला कोर्ट में है कंप्यूटर ऑपरेटर।रीतेश सिंहा ने अपने जीवन में कई बाधाओं का सामना किया, लेकिन दृढ़ इच्छा शक्ति और दृढ़ संकल्प के साथ, रीतेश ने खुद को बाधाओं से ऊपर उठाया। 2010 से वह जिला करनाल कोर्ट में कंप्यूटर ऑपरेटर की नौकरी करते हैं। ऐसा कर उन्होंने सीपी (सेरेब्रल पाल्सी) के अर्थ को ही बदल दिया, सेरेब्रल पाल्सी यानि कैपेबल पर्सन (सक्षम व्यक्ति)।
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11 महीने में पता लगा था माता पिता को सेरेब्रल पाल्सी का।

रीतेश की मां डा. आरपी सिन्हा ने बताया कि रीतेश का जन्म 30 मार्च 1974 को वडोदरा, गुजरात में हुआ था। जब वह 11 महीने का हुआ तो उन्हें पता लगा कि उनके बेटा सेरेब्रल पाल्सी बीमारी से पीडि़त है। उसके बाद वे करनाल में शिफ्ट हो गए थे। शारीरिक अक्षमता के कारण रीतेश अपने शरीर को भी कंट्रोल करने में सक्षम नहीं था, जिसकी वजह से कोई भी स्कूल उसे दाखिला देने के लिए तैयार नहीं था। एक संघर्ष के बाद, रीतेश को एक स्कूल में दाखिला मिला। अपनी प्रारंभिक शिक्षा में कई उतार-चढ़ाव के बावजूद रीतेश सिन्हा ने पोस्ट ग्रैजुएट डिप्लामा इन कंप्यूटर एप्लिकेशन, इनफॉर्मेशन टैक्नोलोजी में स्नातकोत्तर और प्राकृतिक चिकित्सा में डिप्लोमा पूरा किया।
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व्हाट्सएप और फेसबुक पर बनाया ग्रुप बनाकर करते है मॉटिव।
रीतेश ने व्हाट्सएप और फेसबुक पर अपने “कैपेबल पर्सन ग्रुप” बनाया हुआ है। इस ग्रुप में पूरे भारत से 150 से ज्यादा उन जैसे व्यक्ति जुड़े हुये हैं और वह उन्हें मॉटिव करते रहते हैं। उन्होंने अंडरस्टैंडिंग ऑफ सेरेब्रल पाल्सी नामक बुक लिखी है। उसे कैविनकर एबार्ड अवार्ड, मानद डॉक्टरेट की उपाधि भी मिल चुकी है। उनके डिजिटल इंडिया अभियान के लिए इनटेल व दि बैटर इंडिया डोट कोम द्वारा चयन किया गया था।
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खुद बनाई थी ट्राइसाइकिल, अब रहते हैं मां के साथ
रीतेश ने 1990 में अपना खुद का‘ रिइट्रीक या पैर से चलने वाला ट्राइसाइकिल बनाया था। जिसके बाद वह 10 किलोमीटर तक खुद ही कहीं भी आने जाने में सक्षम हो गया। पिता का निधन होने के बाद अब वह अपनी मां डा. आरपी सिन्हां सेवानिवृत्त प्रधान वैज्ञानिक, एनडीआरआई करनाल के साथ सेक्टर-13 में रह रहे हैं।

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