विश्व शांति सेवा चेरिटेबल ट्रस्ट के तत्वाधान में हुड्डा ग्राउंड नंबर 1 सुपर मॉल, नजदीक हुड्डा कार्यालय, करनाल (हरियाणा) में कथा वाचक पूज्य श्री देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज के मुखारबिद से श्रीमद् भागवत कथा का आयोजन किया जा रहा है। कथा के छठे दिन भी हजारों की संख्या में भक्तों ने महाराज जी के श्रीमुख से कथा का श्रवण किया।
कथा के छठे दिन आरएसएस प्रचारक माननीय इंद्रेश जी ने कथा में अपनी गरिमामयी उपस्थिति दर्ज करवाई। इंद्रेश जी ने पूज्य महाराज जी ने उन्हे पूज्य महाराज जी ने मिशन की ओर से स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया।
देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज द्वारा आज कथा से पूर्व छ: फीट की अगरबत्ती भी प्रज्जवलित की गई।
भागवत कथा के छठे दिन की शुरुआत भागवत आरती और विश्व शांति के लिए प्रार्थान के साथ की गई।
देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज ने कथा की शुरुआत करते हुए कहा की आजकल डॉक्टर पैदा होते है, इंजिनियर पैदा होते है लेकिन देशभक्त पैदा नहीं होते। उन्होंने कहा की जो देशभक्त पैदा होते भी है झंडा लेकर चलते भी है तो लोग उन्हे गोली मार देते हैं। महाराज श्री ने कहा की मैं उन माओं को प्रणाम करता हूं जो देश के लिए बलिदान देने वाले पुत्रों को जन्म देती हैं।
महाराज जी ने कहा की दीनो के प्रति दयावान होने का संदेश देना संतो का काम है। महाराज जी ने कहा की हम जब भी काम पर जाएं तो मंदिर होते हुए जाएं क्योंकि मंदिर होते हुए जाओगे तो विचार अच्छे आएंगे और काम भी अच्छा होगा
देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज ने कहा की कब वक्त मेरा बदलेगा ये भगवान जानता है, लेकिन अगर में बड़ा हूं और मेरे साथ अच्छाई है तो मेरा वक्त बुरा नहीं हो सकता मेरी अच्छाई बुरा होने से बचा लेगी
महाराज जी ने कहा की सात दिन लगातार जो भी व्यक्ति कथा का श्रवण करता है उसके जीवन में बदलाव जरुर आते हैं इस बात की गारंटी है। महाराज जी ने युवाओं से निवेदन किया की कथा का श्रवण जरुर करें क्योंकि जो आप अभी सिखेंगे वहीं आपके आने वाली पीढ़ी में जाएगा और कोई भी व्यक्ति ये नहीं चाहेगा की उसका बेटा धर्मात्मा ना बने। उन्होंने कहा की सरकार कहती है की बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओं लेकिन मैं कहता हूं की बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओं लेकिन पहले बेटों का संस्कारी बनाओं । महाराज ने कहा की माता पिता को अपने बच्चों को चरित्र का उपदेश देना चाहिए।
महाराज जी ने कथा का वृतांत सुनाते हुए कहा की महाराज श्री ने बताया कि शुकदेव जी महाराज परीक्षित से कहते हैं राजन जो इस कथा को सुनता हैं उसे भगवान के रसमय स्वरूप का दर्शन होता हैं। उसके अंदर से काम हटकर श्याम के प्रति प्रेम जाग्रत होता हैं। जब भगवान प्रकट हुए तो गोपियों ने भगवान से 3 प्रकार के प्राणियों के विषय में पूछा। 1 . एक व्यक्ति वो हैं जो प्रेम करने वाले से प्रेम करता हैं। 2 . दूसरा व्यक्ति वो हैं जो सबसे प्रेम करता हैं चाहे उससे कोई करे या न करे। 3 . तीसरे प्रकार का प्राणी प्रेम करने वाले से कोई सम्बन्ध नही रखता और न करने वाले से तो कोई संबंध हैं ही नही। आप इन तीनो में कोनसे व्यक्ति की श्रेणियों में आते हो? भगवान ने कहा की गोपियों! जो प्रेम करने वाले के लिए प्रेम करता हैं वहां प्रेम नही हैं वहां स्वार्थ झलकता हैं। केवल व्यापर हैं वहां। आपने किसी को प्रेम किया और आपने उसे प्रेम किया। ये बस स्वार्थ हैं। दूसरे प्रकार के प्राणियों के बारे में आपने पूछा वो हैं माता-पिता, गुरुजन। संतान भले ही अपने माता-पिता के , गुरुदेव के प्रति प्रेम हो या न हो। लेकिन माता-पिता और गुरु के मन में पुत्र के प्रति हमेशा कल्याण की भावना बनी रहती हैं। लेकिन तीसरे प्रकार के व्यक्ति के बारे में आपने कहा की ये किसी से प्रेम नही करते तो इनके 4 लक्षण होते हैं- आत्माराम- जो बस अपनी आत्मा में ही रमन करता हैं। पूर्ण काम- संसार के सब भोग पड़े हैं लेकिन तृप्त हैं। किसी तरह की कोई इच्छा नहीं हैं। कृतघ्न – जो किसी के उपकार को नहीं मानता हैं। गुरुद्रोही- जो उपकार करने वाले को अपना शत्रु समझता हैं। श्री कृष्ण कहते हैं की गोपियों इनमे से मैं कोई भी नही हूँ। मैं तो तुम्हारे जन्म जन्म का ऋणियां हूँ। सबके कर्जे को मैं उतार सकता हूँ पर तुम्हारे प्रेम के कर्जे को नहीं। तुम प्रेम की ध्वजा हो। संसार में जब-जब प्रेम की गाथा गाई जाएगी वहां पर तुम्हे अवश्य याद किया जायेगा। पहले तो भगवान ने रास किया था लेकिन अब महारास में प्रवेश करने जा रहे हैं। तीन तरह से भगवान श्री कृष्ण ने रास किया है। एक गोपी और एक कृष्ण, दो गोपी और ए
क कृष्ण, अनेक गोपी और एक कृष्ण। इस महारास में कामदेव ने गोपियों को माध्यम बनाकर 5 तीर छोड़े थे। अब महारास के समय कामदेव ने 5 तीर छोड़े- 1. आलिंगन 2. नर्महास 3. करळकावलिस्पर्श 4. नखाग्रपात 5 . षस्मित्कटाक्षपात ये पांच तीर कामदेव ने गोपियों के माध्यम से छोड़े थे लेकिन भगवान ने हर तीर को परास्त किया। श्रीमद भागवत कथा को आगे बढ़ाते हुए ठाकुर जी महाराज ने कहा कि हमारी इच्छाएं ही सारे पापों की जड़ हैं। इसलिए इन इच्छाओं को ही छोड़ दे। दुनिया की सारी बाधाएं दूर हो जाएंगी। हर भक्त के मन में यह भाव होना चाहिए कि हमें श्री कृष्ण मिले, भले ही मेरे जीवन के अंतिम साँस से पहले ही क्यों ना मिले। उन्होंने कहा कि सद्कर्मों से आत्मा खुश होती है। इसका प्रमाण देखना हो तो कभी किसी का छीन करके खाओ, देखना आत्मा खुश नहीं होगी। फिर किसी ज़रूरतमंद को कुछ खिलाकर देखना कि आत्मा कितनी खुश होती है।
कथा का आयोजन विश्व शांति सेवा चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा किया जा रहा है। कथा पंडाल में कई गणमान्य अतिथियों ने अपनी गरिमामयी उपस्थिती दर्ज करवाई ।