December 7, 2025
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दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की ओर से श्री शिव चित्र गुप्त मंदिर में सत्संग एवं भजन संकीर्तन का आयोजन किया गया | जिसमें गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी सुश्री कात्यायनी भारती जी ने कहा समाज की आधारभूत ईकाई ‘मानव’ आज एकता, परस्पर सौहार्द और आपसी भाईचारे के महत्व को भूला बैठा है।

ईर्ष्या,घृणा जैसी कुत्सित भावनाओं का सर्वत्र बोलबाला है। ऐसे में स्वस्थ समाज की कल्पना करना भी अत्यंत दुःसाध्य सा प्रतीत होता है। परन्तु साथ ही इस सत्य को भी अस्वीकार नहीं किया जा सकता कि वर्तमान सामाजिक विकृतियों के जिम्मेदार हम स्वयं ही है। ये घृणात्मक परिस्थितियां हमारी अवैज्ञानिक व संकुचित विचारधारा के ही परिणामवश हैं।

उदाहरणतः जब एक त्रिशंकू में से सफेद प्रकाश की किरणों गुजरती है तो सात विभिन्न रंग दिखाई देते हैं एक साधारण मनुष्य अल्पज्ञता के कारण इन सात रंगों को भिन्न स्रोतों से उत्पन्न मानता है परंतु एक वैज्ञानिक जानता है यह विभिन्न रंगों की किरणें सफेद प्रकाश का ही विघटित स्वरूप मात्र है।दृष्टिकोण का यही अंतर एक साधारण इंसान व ब्रह्माज्ञान प्राप्त साधक के बीच की व्याप्त होता है।

साधारण मनुष्य के लिए यह सारा संसार भिन्न भिन्न भाषा भूषा, रूप रंग व सम्‍प्रदायों वाले जीवों का गृहस्थान है ।परंतु एक ज्ञानी भक्त इन विभिन्नताओं में भी अभिनन्ता का अनुभव करता है ।इन विभिन्नताओं के पीछे उस एक परम स्रोत रचयिता का दर्शन करता है संपूर्ण चराचर जगत में ब्रह्म प्रकाश का अनुभव करना कोई साधारण बात नहीं है।

यह केवल गुरु प्रदत्त दिव्य दृष्टि द्वारा ही संभव है ।उसी से साधक प्रत्येक कृत्ति में व्याप्त उस एक पारलौकिक सत्ता का दर्शन कर पाता है । भगवान श्री कृष्ण गीता में उदघोष करते हैं ‘मयि सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मणिगणा इव’ अर्थात यह संपूर्ण जगत सूत्र में मणियों के सदृश मुझ में पिरोया हुआ है । जो इस सार्वभौमिक ब्रह्म सूत्र का साक्षात्कार कर लेता है।

सी के लिए सम्पूर्ण जगत एक दिव्य माला और प्रत्येक जीव इस माला में गुंथी एक मणि के सामान हो जाता है। स्वामी विवेकानंद जी का भी यही कहना था कि दुर्जन के लिए संसार नरक स्वरूप है। इसके विपरीत एक सज्जन के लिए यह स्वर्ग सदृश ही है। इससे भी विराट दृष्टिकोण ज्ञानी भक्त का होता है। जिसके लिए यह संसार साक्षात् ईश्वर का ही प्रतिरूप बन जाता हैं

। नामदेव, चैतन्य, मीरा, प्रहलाद, जैसे महान भक्तों ने भी हर कण, हर काया में श्री भगवान के दर्शन किए थें। चैतन्य महाप्रभु जब भी काली घटाओं को देखते थे तो उन्हें उसमें भी अपना श्यामल कृष्णा दिखाई देता और उनके मुख से सहसा ही कृष्ण हे कृष्ण निकल पड़ता । यही सम दृष्टि व विस्तारित प्रेम की भावना विश्व में शांति व सद्भावना प्राप्त करने का मुख्य आधार है इन्हीं के द्वारा भेदभाव की संकीर्ण दीवारें ध्वस्त हो सकती है और वसुधैव कुटुंबकम का भाव साकार ।

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