April 30, 2024

इस अवसर पर स्वामी सम्पूर्णानंद जी ने बड़, नीम और पीपल (त्रिवेणी) के पौधे रोपित करते हुए कहा कि त्रिवेणी इंसान को प्राकृतिक शक्तियों की सवारी करवाती है। त्रिवेणी एक स्थायी यज्ञ है, जहां भी त्रिवेणी लगी होती है वहां हर पल हर क्षण सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बहता है। नजला, जुकाम, छींकों से पीडि़त व्यक्ति यदि इसके नीचे बैठकर श्वास क्रिया (अनुलोम-विलोम, प्राणायाम) करता है तो दमा तक भी ठीक हो जाता है।

उन्होंने कहा कि तपस्वियों की तपस्थली है यह त्रिवेणी। इसमें समस्त देवी देवताओं और पितरों का वास माना जाता है। हमने तो यहाँ तक देखा है कि यदि आप घोर से घोर संकट से भी जूझ रहे हैं और उस समय त्रिवेणी की शरण में चले जाते हैं तो समस्त संकट स्वत ही कट जाते हैं। उन्होंने कहा कि हर वो इंसान जो श्रद्धा भाव से, आध्यात्मिक भाव से त्रिवेणी लगाता है या लगवाता है या इसका पालन पोषण करता है उसका कोई भी सात्विक कर्म विफ ल नहीं होता।

हर एक इंसान को अपने जीवन में एक त्रिवेणी तो अवश्य लगवानी चाहिए। जैसे यह त्रिवेणी बढ़ती है वैसे वैसे आपकी सुख समृद्धि भी बढ़ती जाती है। उन्होंने कहा कि त्रिवेणी लगाने से एक मानसिक सुख की अनुभूति महसूस होती है। त्रिवेणी लगाने से भविष्य में सकारात्मक लाभ प्राप्त होता है इसलिए हमें स्वयं ही नहीं बल्कि दूसरों को भी त्रिवेणी लगाने के लिए प्रेरित करना चाहिए। उन्होंने कहा कि त्रिवेणी लगाना संसार का सबसे श्रेष्ठतम एवं पुण्य कार्य है। बारिश बाढ़ नहीं बरकत लेकर आए इसका एकमात्र उपाय भी त्रिवेणी है।

इस मौके पर केनरा बैंक के डिविजनल मैनेजर आर.के. सूद ने कहा कि त्रिवेणी (बड़, नीम, पीपल) का शास्त्रोंं में विशेष महत्व है। जैसे-जैसे यह त्रिवेणी बढ़ती है वैसे-वैसे आपकी सुख-स्मृद्धि भी बढ़ती जाती है। उन्होंने कहा कि हर इंसान के थोड़े-थोड़े योगदान से एक बड़ी चीज का निर्माण होता है। रातो-रात कुछ नहीं बदला जा सकता। जब एक बीज बोते हैं तो उसे भी बढऩे में समय लगता है। दूसरों की भलाई के लिए जो सांसे हमने जी हैं, वही जिन्दगी है। उन्होंने कहा कि ये जो पर्यावरण की लड़ाई है वो न्याय की लड़ाई है।

हम ये मानते हैं कि वन, जलवायु और पर्यावरण सभी के सांझे सरोकार हैं और इन सांझे सरोकारों का निबाह करना भी हम सभी का दायित्व है। उन्होंने कहा कि ये त्रिवेणी एक साधारण वृक्ष ना होकर इसका अध्यात्मिक महत्व है। त्रिवेणी को शास्त्रों में स्थाई यज्ञ की संज्ञा दी गई है। इस अवसर पर कीर्ति सूद एवं ऋषि मुख्य रुप से उपस्थित रहे।

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