November 22, 2024

हमारे देश में कई लोग ऐसे है और थे जिनके किस्से सुनने के बाद ही हमे उनकी काबिलियत और उनकी महानता का पता लगता है। कई ऐसे गुमनाम लोग जिनका देश सेवा में कही न कही योगदान रहा, ऐसे ही एक शख्स थे रणछोड़भाई रबारी (Ranchordas Pagi) जो भारतीय सेना के गुजरात में स्काउट थे। स्काउट एक लोकल गाइड की तरह होता है जो लोकल जगहों की जानकारी रखता है।

वह दुश्मन घुसपैठियों की संख्या, उनकी गति और उनके द्वारा लादे जाने वाले भार की संख्या को ठीक-ठीक बता सकते थे। वह यह भी बता सकते थे कि वे किस दिशा में गए थे और यदि वे जमीन पर बैठे थे या नहीं और वो भी सिर्फ उनके कदमो के निशान देखकर।

रणछोड़ पगी भी इंडियन आर्मी के लिए एक लोकल गाइड की तरह काम करते थे। रणछोड़ पगी गुजरात में बनासकांठा जिले से थे। जब पाकिस्तानी सेना ने कच्छ सीमा स्थित विद्याकोट थाने पर 1965 के आरंभ में कब्जा कर लिया था तक हमारे 100 सैनिक शहीद हो गए थे और सेना की दूसरी टुकड़ी को ( जिसमे दस हज़ार सैनिक थे ) तीन दिन में छारकोट तक पहुंचना जरूरी हो गया था, तब रणछोड़ पगी ने सेना का मार्गदर्शन किया था और सेना सही समय पर पहुँच पायी थी।

अपनी सबसे उल्लेखनीय उपलब्धियों में, रणछोड़ पगी ने घोर जंगल में छिपे हुए 1200 दुश्मन सैनिकों के स्थान का पता लगाया। इससे एक निर्णायक भारतीय जीत हुई। उन्होंने 1965 और 1971 में पाकिस्तान के साथ युद्ध के दौरान भारतीय सेना को कई प्रमुख पदों पर कब्जा करने में मदद की।


रणछोड पगी जनरल साम माणोक-शॉ (Field Marshal Sam Manekshaw) के ‘हीरो’ थे। इतने अजीज कि ढाका में माणोकशॉ ने रणछोड़भाई पगी को अपने साथ डिनर के लिए आमंत्रित किया था। बोहोत कम सिविल ही थे जिनके साथ माणोकशॉ ने डिनर लिया था। रणछोड़भाइ पगी उनमें से एक थे। माणोकशॉ अपने आखरी समय में भी रणछोड़भाइ पगी को भूल नहीं पाए थे और बार बार उनका नाम ले रहे थे।


वैसे तो उनका जन्म घरपारकर, जिला गढडो पीठापर में हुआ था (जो अब पाकिस्तान में है) लेकिन विभाजन के समय वे पाकिस्तानी सैनिकों की प्रताड़ना से तंग आकर एक शरणार्थी के रूप में भारत आ गए थे। उन्होंने जुलाई 2009 में स्वैच्छिक सेवानिवृति ले ली थी।

पागी सौ साल की उम्र तक भारतीय सेना के गुजरात में गाइड रहे और भारतीय सेना की कईं उपलब्धियों में उनका सीधा योगदान था। यही कारण है की भारतीय सेना ने उनके सम्मान में बीएसएफ ने उन्हें बनासकांठा चौकी का नाम रणछोड़ पोस्ट के रूप में देकर सम्मानित किया। यह पहली बार हुआ था जब किसी आम आदमी के नाम पर किसी पोस्ट का नामकरण किया गया हो।

उनका 19 जनवरी 2013 में 112 साल की उम्र में निधन हुआ।

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