हरियाणा का इतिहास और इसके अतीत में छिपी दास्तां व्यक्ति के मन में उत्सुकता पैदा करती है। कुरूक्षेत्र की बात करें तो इसका महत्व जग जाहिर हैं क्योंकि इसका जुडाव महाभारत काल से है। इसका प्रमाण प्राचीन पुराणों मिलता है।
कुरूक्षेत्र जिसका इतिहास 5000 साल पुराना है,अपने में असंख्य गौरवशाली इतिहास और धर्म से जुडे अनेक तथ्य समेटे हुए हैं। इस पावन धरा की 48 कोस की परिधि में अनेको तीर्थ हैं। काल के प्रभाव से काफी तीर्थ या तो खंडहरों में तबदील होते जा रहे हैं या लुप्त हो चुके हैं। लेकिन इनकी महत्ता आज भी बरकरार है।
ये भी सच है कि लम्बे समय से किसी ने इनके संरक्षण को लेकर इस ओर ध्यान नहीं दिया परंतु वर्तमान हरियाणा सरकार ने हमारी श्रद्घा और आस्था के केन्द्र इन तीर्थों की सुध ली। मुख्यमंत्री कुरूक्षेत्र विकास बोर्ड के साथ मिलकर इन तीर्थाे के जीर्णोद्घार की योजना बनाई। खास बात ये है कि मुख्यमंत्री ने एक कार्यक्रम तय करके कुरूक्षेत्र,कैथल,जींद,पानीपत तथा करनाल के साथ लगते इन तीर्थस्थलों की परिक्रमा की।
करनाल जिला में स्थित 13 तीर्थस्थलों की परिक्रमा करके उनकी स्थिति का न केवल जायजा लिया बल्कि प्रत्येक तीर्थस्थल के जीर्णोद्घार के लिए करोडों रूपए की राशि देने की घोषणा की है। इनमें विमलसर तीर्थ भी शामिल है। इस तीर्थ पर करीब 1 करोड 37 लाख रूपए की लागत से पटकथा, सरोवर की खुदाई, सीढियां, पक्का रास्ता,भिति चित्र तथा विशाल मुर्तियां स्थापित होंगी ताकि पहले की तरह श्रद्घालु तीर्थस्थलों के दर्शन कर सकें।
करीब 1 करोड 37 लाख रूपए की लागत से विमलसर तीर्थ, सग्गा का होगा जीर्णोद्घार, विमलसर तीर्थ में स्नान करने से मनुष्य को होती है इन्द्रलोक की प्राप्ति
सग्गा गांव के उत्तर में स्थित विमलसर नामक इस तीर्थ का उल्लेख पौराणिक साहित्य में मिलता है। वामन पुराण के अनुसार जो व्यक्ति इस तीर्थ में स्नान करता है, वह रूद्र लोक को प्राप्त करता है। महाभारत वन पर्व के अन्तर्गत तीर्थ यात्रा प्रसंग में भी इस तीर्थ का नाम एवं महत्व वर्णित है। महाभारत के अनुसार विमल नामक इस उत्तम तीर्थ के जल में स्वर्ण एवं रजत रंग की मछलियां दिखाई देती हैं। इस तीर्थ में स्नान करने से मनुष्य को शीघ्र ही इन्द्रलोक की प्राप्ति होती है तथा वह सभी पापों से शुद्घ होकर परम गति को प्राप्त करता है। इस तीर्थ पर शिव एकादशी तथा होली के अवसर पर लगने वाले मेले इस तीर्थ के धार्मिक एवं सांस्कृतिक महत्व को प्रकट करते हैं।
धर्मक्षेत्र-कुरूक्षेत्र की गणना विश्व के प्राचीनतम तीर्थस्थलों में होती है। सरस्वती एवं दृष्दवती नदियों के बीच का यह भू-भाग भारतीय,संस्कृति,कला एवं दर्शन का उदगम स्थल रहा है। यहीं ऋषियों द्वारा वैदिक साहित्य का सृजन एवं आंकलन किया गया था। इसी कारण कुरूक्षेत्र को वैदिक सभ्यता की क्रीडास्थली भी कहा जाता है। लोक मान्यताओं के अनुसार कुरूक्षेत्र का नामकरण पुरूवंशी राजा कुरू के नाम पर हुआ था। पौराणिक कथाओं के अनुसार राजा कुरू ने कुरूक्षेत्र की भूमि को आध्यात्मिक संस्कृति की खेती के लिए जोता था। राजा कुरू इस भूमि में तप,सत्य, क्षमा,दया,शुचिता,दान,योग,एवं ब्रह्मïचर्य युक्त अष्टïांग महाधर्म की स्थापना करना चाहते थे।
सामान्यत:कुरूक्षेत्र को महाभारत युद्घ की रणस्थली भी कहा जाता है। इस युद्घ के आरम्भ होने से पूर्व मोहग्रस्त अर्जुन को भगवान श्रीकृष्ण ने गीता का शाश्वत उपदेश दिया था जोकि आज भी मानव जाति के लिए उतना ही सामयिक है जितना कि उस समय अर्जुन के लिए था। भगवदगीता की शिक्षाएं देश,काल एवं पात्र की सीमाओं से परे है। महाभारत में कुरूक्षेत्र को तीर्थ राज कहा गया है। इस भूमि की धार्मिक महत्ता दक्षिण-पूर्व एशियाई देश लाओस से प्राप्त 5वीं शती ई.के अभिलेख कुरूक्षेत्र महात्म्य से भी सिद्घ होती है। लाओस के राजा देवानिक ने लाओस के चम्पासाक प्राुत में नवीन कुरूक्षेत्र का निर्माण करवाया था। मध्यकालीन इतिहासकारों के अनुसार कुरूक्षेत्र हिन्दुओं के लिए उतना ही पवित्र एवं सर्वश्रेष्ठï तीर्थ था। जितना कि मुस्लिमों के लिए मक्का। कुरूक्षेत्र के आस-पास के पुरातात्विक स्थलों से प्राप्त पुरावशेष इस भूमि के साहित्यगत विवरणों को प्रमाणित करते हैं।