कर्णनगरी की धर्मपारायण जनता के आस्था-केन्द्र के रूप में उभर रहे महाप्रभावी श्री घण्टाकर्ण देव तीर्थस्थान पर विशेष कृपा दिवस कृष्ण चौदस के उपलक्ष्य में आयोजित मासिक श्रद्धालु संगम में श्रद्धा-भक्ति तथा आस्था का विशेष नजारा दृष्टिगोचर हुआ। रविवार होने के कारण सूर्योदय से देर शाम तक अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति हेतु दैवी कृपा की आशा से उपस्थित जैन समाज एवं अन्य वर्गों से जुड़े श्रद्धालुओं की विपुल उपस्थिति इस उदीयमान तीर्थस्थल की जन स्वीकार्यता का परिचय दे रही थी। सर्दी के बावजूद भक्तों की लगन तथा उत्साह दर्शनीय था।
श्री घण्टाकर्ण बीमन्त्र के सामूहिक जाप से देवता का आह्वान करते हुए सभी के कल्याण तथा कुशल-क्षेम की कामना की गई। साध्वी जागृति, अलका जैन, जयपाल सिंह, पवन जैन, कर्मवीर, अनिता जैन, रानी जैन, प्रवीण जैन ने अपने भक्ति-गीतों से सभी को भाव-विभोर करते हुए समां बंाध दिया। दादा देने वाले हैं, हम लेने वाले हैं आज खाली हाथ नहीं जाना, है यह पावन भूमि यहां बार-बार आना, मेहरां वालिया दादा रक्खीं चरणां दे कोल, मेरे घर के आगे दादा तेरा मन्दिर बन जाए, करनाल वाले ने रखा है जबसे सर पर हाथ बदली है तकदीर बदले हैं हालात आदि भजनों ने सभी को भक्ति में झूमने के लिए विवश कर दिया।
महासाध्वी श्री प्रमिला जी ने कहा कि श्री घण्टाकर्ण देव बावन वीरों मं तीसवें वीर हैं और इन्हें देव-परिषद् में सेनापति का स्थान प्राप्त है। यह यक्ष जाति के देवता हैं तथा साथ ही सम्यगदृष्टि भी हैं। इनकी आराधना भूत-प्रेत की बाधा का निवारण करती है, रोगों से पिण्ड छुड़वाकर स्वास्थ्य-लाभ कराती है, अड़चनों को दूर कर जीवन-पथ को विघ्ररहित करती है। श्री घण्टाकर्ण देव शिवजी की तरह आशुतोष हैं तथा जिस पर निहाल हो जाते हैं, ब्रह्मा भी उसका बाल बांका नहीं कर सकते और इनकी कोपदृष्टि होने पर कोई भी बचाव नहीं कर सकता। श्री घण्टाकर्ण जी परम प्रतापी तथा महाशक्तिशाली देवता हैं और प्रसन्न होने पर नौ निधियां तथा बारह सिद्धियां प्रदान करते हैं। इनके भक्त को कोई कमी नहीं रहती और उसकी सारी कामनाएं अपने आप ही पूरी हो जाती है। देवता विशिष्ट शक्तियों से सम्पन्न होने के कारण भक्त की भक्ति से प्रसन्न होकर दुर्भाग्य को सौभाग्य में परिवर्तित कर देते हैं। सिर्फ भक्तिपूर्ण समर्पण ही सारे चमत्कार दिखाता है। अंत में बृहत् घण्टाकर्ण स्त्रोत सुनाया गया।
आरती तथा प्रीतिभोज की सेवा पानीपत निवासी उद्योगपति आनन्द कुमार जैन की ओर से रही। श्री घण्टाकर्ण देवता के जयकारों से सारा मन्दिर परिसर गुंजायमान रहा और अपनी मनोकामना पूर्ति के प्रतीक के रूप में सांझ को देवस्थान पर जलाए दीपकों ने दीवाली का दृश्य उपस्थित किया।