करनाल/कीर्ति कथूरिया : यमुना दशहरे पर मां यमुना सेवा समिति के तत्वावधान में मंगलवार को दूसरे दिन भी सूर्योदय के समय कुंजपुरा खंड से लगते यमुना मैया के कुंडा घाट पर महाआरती की गई। मंगलवार को दिन भर में इस घाट पर हरियाणा, पंजाब, पश्चिमी उत्तरप्रदेश व राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली से आए करीब एक लाख श्रद्धालुओं ने श्रद्धा की डुबकी लगाई और मां यमुना की आराधना की।
पूरा दिन यमुना तट पर उत्साह के साथ भजन-कीर्तन किया गया। समिति के संरक्षक संत स्वरूप प्रेमपाल सागर ने सभी अनुयायियों को यमुना को स्वच्छ एवं निर्मल बनाए रखने का प्रण दिलाया। समिति के सेवादारों ने श्रद्धालुओं को दिन भर अूटूट भंडारा चलाकर प्रसाद वितरित किया और प्यासों को पानी पिलाया। समिति की ओर से जरूरतमंदों को वस्त्र वितरित किए गए। आयोजन स्थल पर व्यवस्थाएं बनाए रखी।
यमुना घाट पर ऐसा पहली बार हुआ कि स्नान करने वाले महिला व पुरुष श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए टेंट तक की व्यवस्था की गई। इस स्थान पर यमुना की चौड़ाई बहुत ज्यादा है और जलधारा उत्तरप्रदेश की तरफ है। जो अशक्त श्रद्धालु थे और बुजुर्ग थे उनको समिति के सेवादार जिम्नास्टिक कोच विजय कश्यप ने ट्रैक्टर पर बैठाया और जलधारा तक पहुंचाया ताकि वे स्नान कर सकें।
इस मौके पर रजनीश सुभरी, परविंद्र भाटिया, चंद्रप्रकाश वर्मा, विजय कांबोज, अंशुल राणा, रविंद्र कुमार, अनीता, पंडित हेतराम, सेजल गहलोत, पंकज गहलोत, पारस, पारूल, तरूण, सानवी, अविश, मयंक, सोनाली, लविश, विक्की सिंह, रूमा, इंद्रा, मोनिका वर्मा, सलोचना, पंच दर्शन राणा, राहुल कश्यप, सौरभ, दुर्गेश और फ्यूचर जिम्नास्ट अकादमी कुंजपुरा की पूरी टीम ने सेवादार के रूप में पुण्य कमाया। समिति के अध्यक्ष कर्मबीर लाठर व महासचिव राजपाल रोजड़ा ने कहा कि इस प्रयास से लोगों में जल प्रदूषण को लेकर जागरूकता का जिक्र हो रहा है। इस प्रयास को तेज किया जाएगा।
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यमुना जी की कथा श्रवण को उमड़ी श्रद्धा
यमुना दशहरा के अवसर पर यमुना जी के कुंडा घाट पर हरियाणा राज्य में प्रथम बार हुई यमुना मैया की महाआरती के दौरान संत स्वरूप स्वामी प्रेमपाल सागर ने श्रद्धालुओं को यमुना जी की कथा सुनाई। उन्होंने कहा गर्ग संहिता में वर्णन है भगवान श्रीहरि की आज्ञा से गौलोक (ब्रह्माण्ड का ऊपरी शिखर) से मां यमुना की यात्रा शुरू होती है।
शास्त्रानुसार माना जाता है कि यमुना विभिन्न लोकों से होती हुई विराज और द्रव्य ब्रह्म से मां गंगा भी साथ होती है और मां यमुना में समाहित होकर धारा के रूप में समस्त देव लोकों को स्पर्श करती हुई भारतवर्ष में धराधाम पर सर्वप्रथम समेरू पर्वत से टकराती हैं। फिर मेरू पर्वत से और वहीं से मां गंगा का रास्ता अलग हो जाता है और गंगा हिमालय पर्वत के हिमवान शैलखंड पर स्थापित हो जाती हैं और विराज नदी साथ बनी रहती हैं।
गंगा को भगवान शिव ने अपने शीश पर लिया और फिर गंगोत्री धाम से आगे की यात्रा प्रारंभ करती हैं। गंगा सागर में समाहित होती हैं।
उन्होंने बताया कि मां यमुना मेरू पर्वत से कालिंदी पर्वत पर स्थापित होती हैं और वहीं से बंदरपूंछ स्थान से यमुनौत्री के मुहाने से अपनी यात्रा प्रारंभ करती हैं और उत्तरकाशी से विभिन्न प्रांतों हरियाणा, उत्तरप्रदेश, दिल्ली क्षेत्र (कभी खांडव वन का क्षेत्र) से गुजरती हैं। सूर्यपुत्री होने के नाते खांडव वन में तपस्या भी करती हैं। भगवान सूर्य के प्रताप से बहुत गहरे गेह बनाती हैं। वहां तपस्या करती हैं क्योंकि आगे की यात्रा उन्होंने ब्रजमंडल में अपने इष्ट भगवान श्रीकृष्ण की पावन भूमि पर प्रारंभ करनी होती है।
शास्त्रों में वर्णन है कि वे वहां विशाखा नाम की सखी बनकर गोपियों का एक समूह बनाकर रासलीला कर भगवान के साथ आनंद लेती हैं। उन्हें विभोर करती हैं। तदोपरांत आगे की यात्रा प्रारंभ करके प्रयागराज तीर्थ त्रिवेणी संगम पर मां गंगा में समाहित हो जाती हैं। तब मां गंगा भाव विभोर होकर इनका स्वागत और मां यमुना की प्रशंसा करते हुए कहती हैं कि कृष्णा तुम बहुत बड़भागी हो, पुण्यदायी हो और इस जगत का कल्याण करने वाली हो।
तब मां यमुना उन्हें कहती हैं कि हे भागीरथी हे गंगे इस धराधाम पर तुमसे कोई भी महान और कोई कल्याण करने वाली शक्ति नहीं है। आप मेरी प्रशंसा में ऐसा कह रही हैं, जबकि आपको भगवान श्रीहरि ने जो महानता दी है वो मेरे पास कहां। अब मेरे साथ चलो तो अच्छी बात है। तब मां गंगा ने कहा हे कृष्णा अभी आपके जाने का समय है। आप गौलोक से विभिन्न लोकों से होते हुए जाईये। देवलोक में देवता आपका इंतजार कर रहे हैं। मैंने अभी पाताल लोक में जाना है, निवास करना है और उसके बाद मां भोगवती नदी के रूप में स्थापित होना है।
मां गंगा पाताल लोक में भोगवती नदी कहलाई जिनको शेषनाग व भगवान शिव ने धारण किया। उत्तराखंड, हरियाणा व दिल्ली क्षेत्र का बड़ा भाग गंगा दशहरा के पावन पर्व पर मां यमुना को गंगा की उपमा देते हुए यमुना दशहरा की परंपरा का सदियों से निर्वहन कर रहा है। यमुना मैया में ही गंगा का रूप देखते हैं। पुण्यार्थ के दृष्टिकोण से श्रद्धा एवं अध्यात्म का मूल केंद्र श्रीकृष्ण की प्रियशी होने के नाते यमुना को विश्व में दूसरी सबसे पवित्र नदी का स्थान प्राप्त है। इसलिए विश्व में मां गंगा के साथ ही यमुना सबसे ज्यादा पूजनीय व पवित्र नदी मानी जाती है।