मस्तिष्क पक्षाघात का उल्लेख उन अवस्थाओं के एक समूह के लिए किया जाता है जो कि गतिविधि और हावभाव के नियंत्रण को प्रभावित करते हैं। गतिविधि को नियंत्रित करने वाले मस्तिष्क के एक या अधिक हिस्से को नुकसान पहुंचने के कारण प्रभावित व्यक्ति अपनी मांसपेशियों को सामान्य ढंग से नहीं हिला सकता। इसके लक्षणों का दायरा पक्षाघात के रूपों समेत हल्के से लेकर गंभीर तक हो सकता है।
उपचार शुरू होने पर अधिकतर बच्चे अपनी क्षमताओं में बहुत हद तक सुधार ला सकते हैं। हालांकि समय के साथ लक्षण बदल सकते हैं लेकिन मस्तिष्क पक्षाघात की परिभाषा के हिसाब से तेजी से फैलने वाला नहीं है, अत: अगर बढ़ी हुई क्षति देखने में आती है तो हो सकता है कि समस्या मस्तिष्क पक्षाघात की बजाय कोई और हो।
मस्तिष्क पक्षाघात वाले बहुत से बच्चे दूसरी ऐसी समस्याओं से ग्रस्त होते हैं जिनके उपचार की आवश्यकता होती है। इनमें मानसिक सामान्य विकास में कमी; सीखने की अक्षमता; दौरा; और देखने, सुनने और बोलने की समस्या शामिल है।
प्राय: मस्तिष्क पक्षाघात का निदान तब तक नहीं हो पाता जब तक कि बच्चा दो से तीन वर्ष की उम्र का नहीं हो जाता। तीन साल से अधिक उम्र के 1,000 में से लगभग 2 से 3 बच्चों को मस्तिष्क पक्षाघात होता है। इस देश में हर उम्र के लगभग 500,000 बच्चे एवं वयस्क मस्तिष्क पक्षाघात से ग्रस्त हैं।
मस्तिष्क पक्षाघात की तीन मुख्य किस्में :
स्पास्टिक मस्तिष्क पक्षाघात। प्रभावित लोगों में से लगभग 70 से 80 प्रतिशत लोग स्पास्टिक मस्तिष्क पक्षाघात से ग्रस्त होते हैं, जिसमें कि मांसपेशियां सख्त होती हैं जो कि गतिविधि को मुश्किल बना देती हैं। जब दोनों टांगें प्रभावित होती हैं (स्पास्टिक डाइप्लीजिआ), तो बच्चे को चलने में मुश्किल हो सकती है क्योंकि कूल्हे एवं टांगों की सख्त मांसपेशियां टांगों को अंदर की ओर मोड़ सकती हैं और घुटने पर क्रास कर सकती हैं (इसे सिज़रिंग कहा जाता है)। अन्य मामलों में शरीर का केवल एक ही हिस्सा प्रभावित होता है (स्पास्टिक हेमिप्लीजिआ), अक्सर बाहें टांगों के मुकाबले ज्यादा गहनता से प्रभावित होती हैं। सर्वाधिक गंभीर स्पास्टिक क्वाडरिप्लीजिआ होता है, जिसमें कि अक्सर मुंह और जीभ को नियंत्रित करने वाली मांसपेशियों के साथ-साथ सभी चारों अंग और धड़ प्रभावित होता है। स्पास्टिक क्वाडरिप्लीजिआ वाले बच्चों में मंदबुद्धि और अन्य समस्याएं पाई जाती हैं।
डिसकाइनेटिक मस्तिष्क पक्षाघात। लगभग 10 से 20 प्रतिशत में डिसकाइनेटिक रूप होता है जो कि समूचे शरीर को प्रभावित करता है। इसका पता मांसपेशी के टोन में उतार-चढ़ावों (बहुत सख्त से लेकर बहुत अधिक ढीले तक बदलता रहता है) से चलता है और कई बार यह अनियंत्रित गतिविधि से जुड़ा होता है (जो कि धीमी एवं मुड़ी हुई या त्वरित एवं झटकेदार हो सकती है)।
कायदे से बैठने एवं चलने के लिए अपने शरीर को नियंत्रित करने के लिए बच्चों को अक्सर सीखने में परेशानी होती है। क्योंकि चेहरे एवं जीभ की मांसपेशियां प्रभावित हो सकती हैं, इसके अलावा चूसने, निगलने और बोलने में भी मुश्किल आ सकती है।
एटाक्सिक मस्तिष्क पक्षाघात। लगभग 5 से 10 प्रतिशत इसके एटाक्सिक रूप से ग्रस्त होते हैं, जो कि संतुलन एवं समन्वयन को प्रभावित करती है। प्रभावित व्यक्ति अस्थिर चाल के साथ चल सकते हैं और उन्हें उन गतियों में मुश्किल आती है जिनके लिए सटीक समन्वयन की आवश्यकता होती है, जैसे कि लेखन।
गर्भावस्था के दौरान और जन्म के समय के आसपास ऐसी बहुत सी चीजें घटित होती हैं जो कि मस्तिष्क के सामान्य विकास को बाधित कर सकती हैं और जिनके परिणामस्वरूप मस्तिष्क पक्षाघात हो सकता है। लगभग 70 प्रतिशत मामलों में मस्तिष्क को क्षति जन्म से पहले पहुंचती है, हालांकि यह प्रसव के समय के आसपास, या जीवन के पहले महीने या वर्ष में भी घटित होता है।