हरियाणा के सोनीपत में साल 1996 में हुए दो बम ब्लास्ट में आतंकी अब्दुल करीम टुंडा को कोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुनाई है. इसके साथ ही एक लाख रुपये का जुर्माना भी लगा है. उसे सोनीपत कोर्ट ने सोमवार को दोषी करार दिया था. जिला एवं सत्र न्यायाधीश डॉ. सुशील गर्ग ने उसको सजा सुनाई है. दिल्ली पुलिस ने टुंडा को साल 2013 में नेपाल बॉर्डर से गिरफ्तार किया था.
इससे पहले सितंबर में हुई सुनवाई के दौरान टुंडा ने कोर्ट में कहा था कि वह बम ब्लास्ट के समय पाकिस्तान में था. 28 दिसंबर, 1996 की शाम पहला ब्लास्ट बस स्टैंड के पास स्थित तराना सिनेमा पर हुआ था. इसके 10 मिनट बाद दूसरा ब्लास्ट गीता भवन चौक स्थित गुलशन मिष्ठान भंडार के पास हुआ था. इस बम ब्लास्ट में करीब एक दर्जन लोग घायल हुए थे.
पुरानी दिल्ली के दरियागंज इलाके में 1943 में एक मजदूर के घर पैदा हुआ टूंडा दिल्ली के नजीदीकी कस्बे पिलखुवा में 8वीं क्लास तक पढ़ा. पिता की मौत के बाद टुंडा की पढ़ाई छूटी. वह अपने चाचा के पास मेरठ गया इस आस से कि पढ़ाई फिर शुरू हो सके, लेकिन यहां उसे काम में लगा दिया गया. उसकी मां को जब पता चला तो उन्होंने वापस पिलखुवा बुला लिया.
छोटे मोटे कई काम करने के बाद टुंडा ने 1983 में कपड़ों का कारोबार शुरू किया. यहां उसे बुरी तरह घाटा उठाना पड़ा. इसके बाद वह कुछ रिश्तेदारों के पास अहमदाबाद चला गया. यहां उसने मुमताज नाम की औरत से दूसरी शादी की. दोनों की उम्र में 29 साल का फासला है. अहमदाबाद शहर में अब्दुल करीम टुंडा कुछ दिनों तक कबाड़ी का काम करता रहा.
चूरन वाले सीखा था बम बनाना
टुंडा के कस्बे में एक चूरन वाला आता था. वो कई चूरन के साथ एक सफेद पाउडर मिलाता. तीली दिखाते ही वह जलने लगता. यहां टुंडा ने सीखा पोटेसियम, चीनी और तेजाब के मिक्स्चर से धमाका करना. फिर आतंक की दुनिया में आने के बाद उसने बम बनाने का अपना तरीका ईजाद किया. एल्युमिनियम की रॉड के एक छोर पर कागज और मिट्टी भर दी जाती.
एल्युमिनियम से बनाता था बम
इसमें भरा जाता पोटैसियम क्लोरेट, चीनी और दूसरी तरफ से कागज से रॉड बंद कर दी जाती. अंदर एक तेजाब भरा कैप्सूल छोड़ दिया जाता. इससे लगती आग और फिर कुछ ही देर में होता धमाका. इस ढंग से टुंडा ने मुंबई, दिल्ली और हैदराबाद समेत कई जगहों पर कुल 43 धमाके किए. इतना ही भारत से बाहर पाकिस्तान और बांग्लादेश में उसका काम जारी रहा.
कैसे टूटा हाथ, कैसे पड़ा नाम टुंडा
स्पेशल सेल की मानें तो साल 1985 अब्दुल करीम टुंडा में राजस्थान के टोंक इलाके में था. वह एक मस्जिद में जिहाद के लिए मीटिंग कर रहा था. उसी दौरान वह मौजूद लोगों को पाइप गन चलाकर दिखा रहा था. इसी दौरान गन फट गई और उसका एक हाथ उड़ गया. इसके बाद से उसका नाम टुंडा पड़ गया. लेकिन एक हाथ से वह आतंक जारी रखा.