करनाल – उपप्रवर्तक श्री पीयूष मुनि जी महाराज ने श्री आत्म मनोहर जैन आराधना मंदिर से वर्तमान परिपेक्ष्य में अपने विशेष संदेश में कहा कि कोरोना के कारण जो परिदृश्य हमारे सामने है, धैर्य तथा संयम से उसका सामना करने के लिए सभी को तैयार रहना जरूरी है। इस घातक वायरस के कारण दुनिया तेजी से बदल रही है, बढ़ते प्रदूषण के कारण प्रकृति और पर्यावरण का नित्य नया स्वरूप दिखाई दे रहा है। केदारनाथ का जल प्रलय, कोरोना का कहर, पर्यावरण परिवर्तन की समस्या, कभी ताऊते तो कभी यास तूफान आदि अनेक चुनौतियां हमारे सामने हैं। समस्याओं का समाधान करने का दायित्व सिर्फ सरकार का ही नहीं है। सरकारी तंत्र के साथ-साथ सभी नागरिकों का भी राष्ट्रीय कर्त्तव्य तथा दायित्व है कि सब मिलकर इन चुनौतियों का सामना करें। कोविड-19 ने मन तथा मस्तिष्क पर एक हानिकारक मनोवैज्ञानिक दबाव उत्पन्न कर दिया है। पूरे वैश्विक स्तर पर तनाव, चिंता, भय, हताशा, जीवन से ऊब आदि अनेक मनोविकार उत्पन्न हुए हैं। साथ ही इस समय आर्थिक मंदी, मुद्रा प्रवाह में कमी तथा बेरोजगारी भी आश्चर्यजनक रूप से बढ़ गए है। इन सब मनोविकारों से उबरने के लिए सबसे सहज तथा प्रभावी उपाय है – योग, ध्यान तथा प्राणायाम। इस समय योग, ध्यान और प्राणायाम का वैश्विक शिक्षण बहुत जरूरी है ताकि हम सभी के अंदर इम्यूनिटी (प्रतिरोधक क्षमता) तथा ह्यूमैनिटी (मानवता) दोनों को साथ ही सुरक्षित किया जा सके।
मुनि जी ने कहा कि मानव अपने कल्याण के लिए योग को अपनी दिनचर्या बनाए। योग करें, रोज करें तथा मौज करें क्योंकि भारतीय ऋषियों की सूक्ति पहला सुख निरोगी काया के अनुसार हम स्वस्थ शरीर में ही जीवन का सही आनंद ले सकते हैं। इसीलिए करें योग, रहें निरोग। जो आत्मा को परमात्मा, पुरुष को प्रकृति से जोड़ता है, वही योग है। योग से मानव अपनी भूमिका तथा नींव मजबूत बना सकता है। योग न केवल शारीरिक आसनों का नाम है बल्कि शरीर का आत्मा से, आत्मा का परमात्मा और प्रकृति से संयोग भी कराता है। प्राणायाम का अर्थ है – प्राणों का आयाम। इससे जीवन शक्ति बनी रहती है, ऊर्जा नियंत्रित होती है तथा शरीर में प्राणवायु का सतत प्रवाह बना रहता है। ऑक्सीजन की समुचित आपूर्ति इस समय की सबसे बड़ी जरूरत है। इस समय योग के साथ सहयोग की भी अत्यंत आवश्यकता है। इसीलिए योग के साथ-साथ निष्काम तथा लोकोपकार हित कर्मयोग भी करें। महामारी के कारण घरों में सीमित हो जाने की वजह से शारीरिक श्रम तथा व्यायाम न रहने के कारण उत्पन्न मोटापा अनेक रोगों की उत्पत्ति कर रहा है। शारीरिक गतिविधियां, खेल-कूद बंद हो चुके हैं तथा खान-पान की अनियमितता, अति भोजन, प्रतिकूल भोजन तथा प्रकृति विरुद्ध भोजन से रोग बढ़ रहे हैं।
योगमय संस्कृति को अपनाना ही सबसे सहज मार्ग है। योग: कर्मसु कौशलम् – कर्मों को कुशलतापूर्वक करना ही योग है। व्यायाम से स्वास्थ्य, लंबी आयु, बल तथा सुख की प्राप्ति होती है। निरोगी होना ही परम सौभाग्य है तथा स्वास्थ्य से सभी कार्य सफलतापूर्वक सिद्ध होते हैं। योग मानव के संपूर्ण व्यक्तित्व को आमूलचूल बदल देता है। योगमय जीवन पद्धति जितनी जल्दी अपनाई जाए, उतना ही श्रेष्ठ है। योग कर्म करने से पहले योगस्थ हो जाना सिखाता है जिससे कर्म करना भी साधना का अंग बन जाता है।