November 15, 2024

 

करनाल (मालक सिंह) 2014 में हरियाणा की खट्टर सरकार को चंडीगढ़ तक पहुँचने में डेरा सिरसा ने मुख्यभूमिका निभाई थी। 2014 के विधानसभा चुनाव की जीत के बाद हरियाणा भाजपा चुनाव प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय ने डेरा जाकर बाबा का धन्यवाद किया था। तब लोगो में एक बात आम हो गई थी।कि हरियाणा में डेरा की जीत हुई है। भाजपा की नहीं।
सरकारों को अपने दरबार में माथा टेकने को मजबूर करने वाला बाबा, कैसे इतना ताकतवर बन गया ?

हरियाणा में कोई भी सरकार रही हो ,चाहें इंडियन नेशनल लोकदल, कांग्रेस या भाजपा, हर सरकार को कठपुतली की तरह नाचता रहा है डेरा मुखी गुरमीत राम रहीम।

1990 में गद्दी पर बैठते ही डेरा की शक्ति धीरे धीरे बढ़ने लगी। हरियाणा की राजनीतिक पार्टियों व राजनेताओँ को इस बात का एहसास हो गया था।अगर हरियाणा में कुर्सी की लड़ाई जीतनी है तो डेरे में नाक रगड़नी ही पड़ेगी।ऐसा ही नजारा पड़ोसी राज्य पंजाब का भी रहा है।

इतनी ऊँची पहुँच होने के बाद बाबा के गलत कामों की लिस्ट भी लंबी होती चली गई।चाहे वो साध्वी यौन शोषण मामला हो, 400 अनुयायियों को नपुंसक बनाने का मामला हो, सिरसा के पत्रकार छत्रपति की हत्या हो या फिर मैनेजर रणजीत सिंह की हत्या हो। आस्था और श्रद्धा की आड़ में चल रहे इन सभी कुकर्मों के चलते, सभी तत्कालीन सरकारें बाबा के हाथ की कठपुतलियां बनी रही। अपने निजी राजनीतिक स्वार्थ के लिए आम जन के घरों को जलवाती रही है हरियाणा की गंदी राजनीति।

भारतीय लोकतंत्र को आतंकवाद और नक्सलवाद के साथ साथ ऐसे अंधविश्वास बढ़ाने वाले बाबाओं से भी खतरा है।

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