प्रदेश की सियासी बिसात पर करनाल लोकसभा से कांग्रेस सरकार में लगातार 2 बार पूर्व सांसद रहे अरविंद शर्मा की गोटियां फिलहाल सही नहीं बैठ रही है ! उनका हर दांव उलटा पड़ता नजर आ रहा है, अब जबकि लोकसभा चुनाव में ज्यादा वक्त नहीं रहा है, इसके बावजूद पूर्व सांसद किसी भी दल में टिकट की दावेदारी जताने की स्थिति में फिलहाल नजर नहीं आ रहे हैं !
लोकसभा क्षेत्र में ग्राउंड कनेक्टिविटी का अभाव उन्हें खासा परेशान कर रहा है ! इस वजह से मतदाता उनके हाथ से फिसल गए हैं ! इस स्थिति में अब कौन सा दल उन पर दाव लगाएगा? राजनीतिक जानकारों का मानना है कि शर्मा अंतिम वक्त में कुछ न कुछ गुणाभाग कर ही लेते हैं ! लेकिन अब क्योंकि मतदाता का सियासी मिजाज बदल रहा है, ऐसे में अंतिम वक्त का फार्मूला गौण होता जा रहा है !
डा. अरविन्द शर्मा ने सोनीपत से 1996 में आजाद प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़कर जीत दर्ज की थी। बाद में उन्होंने करनाल सीट पर कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा का चुनाव जीता , यहां से दो बार सांसद चुने गए ! पिछला लोकसभा चुनाव भी कांग्रेस के टिकट पर लड़ा था, लेकिन मोदी लहर में भाजपा प्रत्याशी अश्वनी चौपड़ा से हार गए थे !
अचानक कांग्रेस छोड़ बसपा में शामिल होना रास नहीं आया अरविंद शर्मा को
पूर्व सांसद करनाल अरविन्द शर्मा कांग्रेस की टिकट पर दो बार करनाल सीट से सांसद का चुनाव जीते हैं उसके बाद पिछले विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस का साथ छोड़कर बसपा में चले गए ! विधानसभा चुनाव में मिली नाकामयाबी के बाद उन्होंने बसपा को भी अलविदा कह दिया, इसके बाद उनका भाजपा प्रेम भी सामने आया , एक वक्त तो ऐसा लगा था कि वह भाजपा ज्वाइन कर लेंगे शिक्षा मंत्री राम बिलास शर्मा से नजदीकियां उनकी कई बार सामने देखने को मिली , लेकिन बात ज्यादा आगे नहीं बढ़ पाई ! भाजपा प्रेम पिछले साल उस समय हवा हो गया, जब उन्होंने पानीपत में शक्ति प्रदर्शन किया, उन्होंने कहा वह करनाल लोकसभा से ही चुनाव लड़ेंगे, मेरे वर्कर ही मेरी पार्टी है , कार्यकर्ता जो कहेंगे वहीं करेंगे !
बसपा में जाना बड़ी परेशानी बन रहा
शर्मा के लिए कांग्रेस को छोड़ बसपा में जाना उनका सही निर्णय साबित नहीं हुआ ! बाद में बसपा को भी अलविदा कह दिया, इस तरह के निर्णयों से उनकी राजनीति को गहरा झटका लगा है ! इससे जहां कांग्रेस में उनके लिए दरवाजे बंद होते नजर आ रहे हैं, वहीं दूसरे दल में जाना भी मुश्किल लग रहा है ! भाजपा में जिस तरह से टिकट के दावेदार बढ़ रहे हैं, इससे शर्मा के लिए वहां भी टिकट की सम्भावना कम ही लग रही है ! ऐसे में अब कहां जाए? तो अब विकल्प क्या है?
करनाल लोकसभा क्षेत्र का मतदाता बाहरी उम्मीदवार को तो स्वीकार कर लेता है, लेकिन आजाद उम्मीदवार को आज तक लोकसभा में नहीं भेजा ! ऐसे मे अब इस धारणा को तोड़ना शर्मा के लिए बड़ी चुनौती है, नए गठित हुए किसी दल में उनके लिए संभावना बन सकती है, अब यह प्रयास कितना कारगर साबित होगा यह तो वक्त ही बताएगा, फिलहाल तो करनाल लोकसभा सीट के सियासी परिदृश्य से डाक्टर साहब तो गायब से नजर आ रहे हैं !