शहर के सरकारी अस्पताल में ओपीडी शुरू हुए आठ महिने बीत चुके हैं लेकिन अभी तक अस्पताल में लेबर रूम की मरम्मत का कार्य ही पुरा नहीं हुआ है। जिस कारण गर्भवती महिलाओं को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।हालांकि सरकारी अस्पताल में गर्भवती महिलाओं की डिलीवरी हो रही है लेकिन जो सिजेरियन का केस होता है उसे डॉक्टर मेडिकल कॉलेज में रेफर कर देते हैं, लेकिन मेडिकल कॉलेज के गायनी वार्ड में पहले ही एक बैड पर तीन-तीन गर्भवती महिलाओं को लेटना पड़ रहा है। सीएम सिटी में मेडिकल कॉलेज और सिविल अस्पताल होने के बावजूद भी
प्राइवेट अस्पताल में जाना पड़ रहा है। इसका मुख्या कारण रही है कि मेडिकल कॉलेज और सरकारी अस्पताल में
पूरी तरह से स्वास्थ्य सेवाएं नहीं मिल रही है। एक तरफ तो सरकार ने प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान चलाया हुआ है लेकिन गर्भवती महिलाओं को आज भी धक्के खाने पड़ रहे हैं।
50 बेड का है सरकारी अस्पताल का लेबर रूम जो नहीं चल रहा
सरकारी अस्पताल का लेबर रूम 50 बैड का है। यदि यह लेबर रूम शुरू हो जाता तो आज गर्भवती महिलाओं को इतनी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता। क्यों कि मेडिकल कॉलेज में तीन गायनी वार्ड है जिनमें 30-30 बैड है। लेकिन गर्भवती महिलाओं की संख्या अधिक है।
धीमी गति से हो रहा है सरकारी अस्पताल का मेंटेनेंस कार्य।
सरकारी अस्पताल में 22 दिसंबर 2017 को ओपीडी शुरू करने बाद मेंटेनेंस का कार्य शुरू हो गया था, जिस शुरू हुए आठ महीने हो चुके हैं। लेकिन अभी तक मेंटेनेंस का कार्य पूरा नहीं हुआ है। पीडब्ल्यूडी विभाग द्वारा धीमी गति किए जा रहे कार्य का खामियाजा मरीजों को भुगतना पड़ रहा है। क्योंकि स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों का कहना है कि अभी मेंटेेनेंस का कार्य पूरा नहीं हुआ है, जबतक कार्य पूरा नहीं होगा तब तक लेबर रूम शुरू नहीं हो सकता।
प्राइवेट अस्पताल में हो रही है सबसे ज्यादा डिलीवरी।
मेडिकल कॉलेज व सरकारी अस्पताल होने के बावजूद भी प्राइवेट अस्पताल में महिलाओं की डिलीवरी सबसे ज्यादा हो रही है। क्योंकि इन दोनों संस्थानों में स्वास्थ्य सेवाएं पूरी तरह से न मिलने के कारण महिलाएं प्राइवेट अस्पताल में जा रही है और मजबुरन उन्हें 15 हजार से उपर रुपए भी देने पड़ते हैं।
प्रथम मंजिल पर अस्थाई लेबर रूम, महज 10 बैड उपलब्ध।
सरकारी अस्पताल में लेबर रूम में चल रहा मेंटनेंस वर्क पूरा नहीं हुआ है। अस्थाई तौर पर अस्पताल की प्रथम मंजिल पर लेबर रूम को शुरू किया गया है। अप्रैल माह में इसे शुरू किया गया था, यहां पर महज 10 बैड की व्यवस्था की गई है। जबकि गायनी के रोजाना पेसेंट 250 से अधिक आते हैं। ओपीडी के हिसाब से बैड कम पड़ जाते हैं। 10 बैड फुल हो जाने के बाद कोई केस दाखिल करने लायक है तो उसके लिए दिक्कतें खड़ी हो जाती हैं। उनको कल्पना चावला
राजकीय मेडिकल कॉलेज में भेज दिया जाता है।
अल्ट्रासाउंड कराने के लिए रात को इंतजार करती है गर्भवती महिलाएं।
करोड़ों रुपए खर्च सरकार ने मेडिकल कॉलेज और सरकारी अस्पताल तो शुरू कर दिए। लेकिन इनका गर्भवती महिलाओं नाममात्र ही लाभ मिल रहा है। क्योंकि आज भी गर्भवती महिलओं को अल्ट्रासाउंड कराने के लिए
रात को मेडिकल कॉलेज व सरकारी अस्पताल में आना पड़ता है और तभी उन्हें पर्ची मिलती है। एक दिन में 20 के करीब ही गर्भवती महिलाओं का अल्ट्रासाउंड होता है।
सरकारी अस्पताल के लेबर रूम में मरम्मत का कार्य चला हुआ है। अस्पताल में अस्थाई लेबर रूम बनाया जा रहा है जहां डिलीवरी भी हो रही है। पिछले महीने करीब 204 गर्भवती महिलाओं की डिलीवरी की गई थी।
पीडब्ल्यूडी विभाग जब मरम्मत का कार्य पूरा कर देगा तभी लेबर रूम शुरू कर दिया जाएगा। – डॉ. पीयूष शर्मा, पीएमओ, नागरिक अस्पताल करनाल।
सरकारी अस्पताल में लेबर रूम में मरम्मत का कार्य तेजी से चल रहा है, जल्द ही यह कार्य पूरा कर लिया जाएगा। लगभग सारा कार्य पूरा हो चुका है। – रामकुमार नैन, एक्सईन, पीडब्ल्यूडी, करनाल।