करनाल/दीपाली धीमान : 21 दिसंबर 2024 प्रथम अंतरराष्ट्रीय ध्यान दिवस के उपलक्ष्य में अंगिरा गुरुकुल मल्टी थेरेपी सेंटर करनाल में डॉ दीपिका ने साधकों को ध्यान अभ्यास करवाया l डॉ दीपिका ने बताया कि ध्यान के नाम पर लोग केवल कल्पनाएं ही करते हैं जबकि ध्यान की शुद्धतम प्राचीनतम विधि भगवान शिव ने विज्ञान भैरव तंत्र में माता पार्वती को दी तथा महात्मा बुद्ध ने यह विधि सामान्य जन को करवाई जिसका नाम है आनापानसति ध्यान इसमें ध्यान का अभ्यास करना बहुत सरल है, तनिक भी कठिनाई इसमें नहीं है। यह बहुत ही आसान है।
कोई भी सीधे ही आनापानसति ध्यान का अभ्यास आरम्भ कर सकता है, केवल उसे अपने सामान्य श्वास – प्रश्वास के प्रति सजग रहना है। पाली भाषा में, ‘आन’ का अर्थ है श्वास लेना ‘अपान’ का अर्थ है श्वास छोड़ना ‘सति’ का अर्थ है ‘के साथ मिल कर होश पूर्वक रहना’ गौतम बुध्द ने हज़ारों वर्ष पूर्व ध्यान की यह विधि सिखाई थी। साँस तो हम सभी लेते हैं परन्तु हम इस क्रिया के प्रति जागरूक नहीं होते। ‘आनापानसति’ में व्यक्ति को अपना पूरा ध्यान और जागरूकता अपनी सामान्य श्वसन – प्रक्रिया पर रखने की आवश्यकता होती है।
यह आवश्यक है कि हम साँस पर सजगतापूर्वक अपनी निगाह टिकाकर रखें, साँस की क्रिया तो स्वाभाविक रूप से चलती रहनी चाहिए। साँस को किसी भी रूप में रोकना नहीं है, न ही उसे अटका पर रखना है। हमें अपनी ओर से इसकी गति में किसी भी प्रकार का परिवर्तन लाने का प्रयास नहीं करना है। जब मन इधर उधर भागने लगे तो तुरन्त विचारों पर रोक लगा कर पुनः अपने ध्यान को श्वास की सामान्य लय पर ले आना चाहिए। स्वयं को शिथिल छोड़ कर मात्र प्रेक्षक बन जाना चाहिए।
आनापानसति का अभ्यास करते हुए हम एक साथ दो चीज़ें कर सकते हैं: अपनी साँस की प्रेक्षा करना तथा दूसरी बात है – अपनी चेतना का विस्तार होने देना…. जागरूकता को बढ़ा लेना। साँस के प्रति जागरूक रहने का अर्थ है विचारों को मन पर नियन्त्रण न करने देना। ये विचार ही हमारी ऊर्जा को खींचकर बिखरा देते हैं। इसीलिए विचारों के चक्र को जन्म के साथ ही रोक देना चाहिए। साँस के प्रेक्षण का अर्थ है कि हम किसी भी रूप में अपनी भौतिक इन्द्रियों अथवा विचारों द्वारा अपने साँस की लय को प्रभावित न करें, केवल उस पर निगाह ही रखें।
ध्यान में होने वाली तीन महत्वपूर्ण घटनाएं: जब हम श्वास ऊर्जा के साथ होते हैं, तो मन विचार शून्य हो जाता है। जब मन विचारों से मुक्त होता है तो भौतिक शरीर में ब्रह्मांडीय ऊर्जा का प्रवाह होने लगता है। ऊर्जा के निरन्तर प्रवाह दिव्य चक्षु सक्रिय होने लगता है और ब्रह्माण्डीय चेतना का अनुभव प्राप्त होता है। साँस के साथ सजग होकर रहो, आपके भीतर जागरूकता का केन्द्र बन जाएगा तब आपका शरीर ही ब्रह्माण्ड बन जाएगा।
“महात्मा बुद्ध से किसी ने पूछा कि ध्यान करने से आपको क्या मिला? तो बुद्ध ने मुस्कुराते हुए कहा कि मैं यह तो नहीं बता सकता कि मुझे क्या मिला, लेकिन मैं यह निश्चित तौर पर कह सकता हूँ कि ध्यान से मेरे काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद्, मत्सर और अहंकार इत्यादि दोष नष्ट हो गए और मैं निर्मल हो गया।” डॉ दीपिका द्वारा ध्यान अभ्यास के अनेक लाभ बताए गए।
1- नियमित ध्यान के अभ्यास से मन में शान्ति व विचारों में स्थिरता आती है। 2- ध्यान से आत्म विश्वास एवं विवेक शक्ति का विकास होता है। 3- इसके अभ्यास से जीवन में धैर्य व प्रसन्नता का भाव आता है। 4- हाइपरटेंशन व ग़ुस्सा की प्रवृत्ति दूर होती है। 5- ध्यान से आँखों व मस्तिष्क में शीतलता व आराम का अनुभव होता है। 6- बेचैनी व चिंताएँ दूर होती है। 7- ध्यान अभ्यासी को हमेशा आन्तरिक सुख की अनुभूति होती है। 8- धर , परिवार, office में समन्वय, आता है। व कार्य क्षमता का विकास होता है। 9- मानसिक स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। 10- विवेक शक्ति का जागरण व ज्ञान का प्रसार होता है। 11- अध्यात्म शक्ति विकसित होती है । 12- मनुष्य जीवन का परम लक्ष्य स्वयं के वास्तविक स्वरूप को जानने की और अग्रसर होते हैं