करनाल/कीर्ति कथूरिया : हरियाणा पत्रकार संघ ने मुख्यमंत्री मनोहर लाल द्वारा पत्रकारों की बीमा संरक्षण की राशि 5 लाख रुपए से बढ़ाकर 10 लाख रुपए करने की घोषणा का स्वागत किया है। संघ का कहना है यह खुशी की बात है कि 10 लाख रुपए की बीमा राशि का पूरा प्रीमियम सरकार स्वयं भरेगी।
संघ के अध्यक्ष के.बी. पण्डित ने मुख्यमंत्री को पत्रकारों की मांगों के संबंध में दिए गए 11वें ज्ञापन में यह भी मांग की है कि मुख्यमंत्री यथाशीघ्र पत्रकारों को चिकित्सा बीमा संरक्षण देने वाली कैशलेस योजना को भी तुरंत प्रभाव से लागू करे। यह योजना एक या अन्य कारण से गत लगभग 5 वर्षों से लम्बित पड़ी है।
उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री ने आयुष्मान योजना के तहत चिकित्सा बीमा संरक्षण देने वाली योजना का पंचकूला में आयोजित एक समारोह में शुभारंभ किया था। ऐसा पत्रकारों को विश्वास था कि यह घोषणा मुख्यमंत्री ने स्वयं की है तो यह शीघ्र ही लागू हो जाएगी। इसके लिए पत्रकारों से परिवार का पूरा विवरण भी मांगा गया था।
इस योजना के तहत पत्रकार स्वयं, उनकी पत्नी, दो अविवाहित बच्चे और माँ-बाप को 5 लाख रुपए का चिकित्सा बीमा संरक्षण मिलेगा। बाद में सरकार ने इस योजना का नाम बदलकर कैशलेस योजना रख दिया था। यह योजना भी गत दो वर्षों से लटकी पड़ी है। वर्ष 2023-24 के बजट में भी मुख्यमंत्री ने इस योजना को लागू करने की चर्चा की थी। बजट पेश हुए भी लगभग 5 महीने हो गए, लेकिन आज तक इसे लागू नहीं किया गया है।
पण्डित ने अपने पत्र में मांग की है कि डिजीटल मीडिया के लिए यथाशीघ्र नई नीति की घोषणा करनी चाहिए। आजकल डिजीटल मीडिया के लिए कोई नियमावली नहीं है। सरकार को इस संबंध में नीति की घोषणा करके डिजीटल मीडिया को भी दिशा-निर्देश जारी करने चाहिए। डिजीटल मीडिया को एक्रेडिटेशन और विज्ञापन देने के लिए उचित कदम उठाए जाने की जरुरत है।
पत्र में वृद्ध पत्रकारों को मिलने वाली 10 हजार रुपए मासिक पेंशन को भी मध्यप्रदेश सरकार की तर्ज पर 20 हजार रुपए मासिक करना चाहिए। राजस्थान और आंध्रप्रदेश सरकारें गत दो वर्षों से अपने पत्रकारों को 15-15 हजार रुपए मासिक की पेंशन दे रही हैं।
यह अफसोस की बात है कि मुख्यमंत्री ने स्वयं पत्रकारों की मासिक पेंशन में एक-एक हजार रुपए वृद्धि की घोषणा की थी लेकिन यह घोषणा भी कागजों में ही लटकी पड़ी है। पत्र में पत्रकार संरक्षण कानून यथाशीघ्र बनाए जाने की मांग की है। पत्रकारों पर दर्ज शिकायतों की डीएसपी रैंक के अधिकारी से जांच करवाने के बाद ही उनके खिलाफ कोई मामला दर्ज किया जाना चाहिए।
पत्र में पण्डित ने यह भी मांग की है कि राज्य मीडिया एक्रेडिटेशन कमेटी का भी शीघ्र गठन किया जाना चाहिए। गत 9 वर्षों से प्रेस एक्रेडिटेशन कमेटी के गठन का मामला लटका पड़ा है। उन्होंने यह भी मांग की कि लघु समाचार पत्रों को सरकार की वर्तमान विज्ञापन नीति से घाटा हो रहा है। इसलिए सरकार को लघु समाचार पत्रों के लिए लाभकारी विज्ञापन नीति बनानी चाहिए।
सभी पत्रकारों के लिए पांच साल की एक्रेडिटेशन की अनिवार्य शर्त को खत्म करके पेंशन योजना को राज्य के सभी श्रमजीवी पत्रकारों के लिए लागू करनी चाहिए। यदि सरकार पांच साल की एक्रेडिटेशन की अनिवार्य शर्त को खत्म कर देती है तो इसका लाभ 600 से 700 पत्रकारों को मिलेगा। वर्तमान में केवल 144 वृद्ध पत्रकारों को इसका लाभ मिल रहा है।