(मालक सिंह) सोनीपत निवासी एक दिव्यांग युवक अपनी पत्नी के साथ सी एम से मिलने पहुँचा। वह मुख्यमंत्री से मिलने के लिए पंडाल में पहुँच गया लेकिन सुरक्षा कर्मियों ने सुरक्षा कारणों से उसे आगे नहीं जाने दिया। इस युवक ने सी एम के सामने अपने लिए रोजगार की गुहार लगाई। उसने गैस सिलेंडर व अपने चलाने लिए कार्ट के मांग भी की। मुख्यमंत्री के ओ एस डी ने मौके पर पहुँच कर उसकी बात सुनी और हर संभव मदद का भरोसा दिया। मुख्यमंत्री ने कहा कि अगर इसको सिलेंडर देने में कोई नियम कानून बाधा बन रहा है तो मेरे आवास से सिलेंडर उठा कर इसे देदो। यह युवक सोनीपत का अनिल वर्मा है जो अपनी पत्नी सोनिया के साथ यहाँ पहुँचा था।पैसों की मदद की बात पर अनिल भड़क गया और बोला मुझे पैसे नहीं चाहिए मुझे तो बस रोजगार चाहिए।
दिव्यांग युवक अनिल की मदद के लिए ना केवल भारत बल्कि बहुत बड़ी संख्या में एन आर आई भी फरिस्ते बन सामने आये है। विदेशो में रहने वाले प्रवासी भारतीय अनिल को हर संभव मदद का भरोसा दे रहे है। भारत से भी बहुत से लोग मदद को सामने आ रहे है।
सुखचैन सिंह वड़ैच बेल्जियम ,रविन्द्र सिंह मेहलू ऑस्ट्रेलिया, रविंदर शर्मा वत्स नाइजीरिया, अमित राज कौशिक लंदन, विक्रम मथाना इटली , रजत मिहिर वैद और अमित गौर युवा मदद के लिए आगे आये है। करनाल ब्रेकिंग न्यूज़ को ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड ,इटली,अमेरिका, बेल्जियम, दुबई, यूनाईटेड किंगडम व पूरे यूरोप से बहुत से फ़ोन भी आये। हालांकि सरकार इस मामले को लेकर काफी गंभीर नज़र आ रही है। युवक को हर संभव मदद का भरोसा दिला रही है।
विकलांगों को अब दिव्यांग कहा जाने लगा है, लेकिन इस सम्मानजनक संबोधन से उनकी समस्याओं में कोई कमी नहीं आयी है. अधिकतर सार्वजनिक जगहों पर उनके लिए जरूरी सुविधाओं का अभाव है.
भारत में ढाई करोड़ से कुछ अधिक लोग विकलांगता से जूझ रहे हैं. इतनी बड़ी संख्या होने के बावजूद इनकी परेशानियों को समझने और उन्हें जरूरी सहयोग देने में सरकार और समाज दोनों नाकाम दिखाई देते हैं. देश में हुए एक सर्वे से सामने आया है कि अधिकांश सार्वजनिक स्थलों पर सुविधाओं के लिहाज से विकलांगों का जीवन किसी चुनौती से कम नहीं है.
सुविधाओं का अभाव
विकलांगता की समस्या से दो चार हो रहे लोगों के लिए जो न्यूनतम आवश्यक सुविधाएं सार्वजानिक जगहों पर होनी चाहिए, उसका अभाव लगभग सभी शहरों में है. अस्पताल, शिक्षा संस्थान, पुलिस स्टेशन जैसी जगहों पर भी उनके लिए टॉयलेट या व्हील चेयर नहीं हैं. गैर सरकारी संस्था ‘स्वयं फाउंडेशन’ ने देश के आठ शहरों में किये अपने सर्वे में पाया कि सार्वजानिक जगहों पर जो सुविधाएं विकलांगों के लिए होनी चाहिए, वे नहीं हैं.
सोच बदलनी होगी
आधुनिक होने का दावा करने वाला समाज अब तक विकलांगों के प्रति अपनी बुनियादी सोच में कोई खास परिवर्तन नहीं ला पाया है. अधिकतर लोगों के मन में विकलांगों के प्रति तिरस्कार या दया भाव ही रहता है, यह दोनों भाव विकलांगों के स्वाभिमान पर चोट करते हैं. शारीरिक रूप से असक्षम के लिए काम करने वाले किशोर गोहिल कहते हैं, “दिव्यांग कह भर देने से इनके जीवन में कोई बदलाव नहीं आएगा. यह केवल छलावा है.” उनका कहना है, “हमें इंसान ही समझ लो वही काफी है. असक्षमता के चलते जो असुविधा है, उसके लिए इंतजाम होने चाहिए.”
आत्मनिर्भर बनाने पर हो जोर
हाल के वर्षों में विकलांगों के प्रति सरकार की कोशिशों में तेजी आयी है. विकलांगों को कुछ न्यूनतम सुविधाएं देने के लिए प्रयास हो रहे हैं या कम से कम प्रयास होते हुए दिख रहे हैं. वैसे, योजनाओं के क्रियान्वयन को लेकर सरकार पर सवाल उठते रहे हैं.
पिछले दिनों क्रियान्वयन की सुस्त चाल को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को फटकार लगायी है. सकारात्मक परिणाम के लिए दीर्घकालीन उपायों पर जोर देते हुए सानू नायर कहते हैं कि विकलांग व्यक्तियों को शिक्षा, रोजगार और व्यवसाय के लिए विशेष प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए तभी वह बेहतर गुणवत्तापूर्ण जीवन व्यतीत कर सकते हैं.
विकलांगों को शिक्षा से जोड़ना बहुत जरूरी है. इस वर्ग के लिए, खासतौर पर, मूक-बधिरों के लिए विशेष स्कूलों का अभाव है जिसकी वजह से अधिकांश विकलांग ठीक से पढ़-लिखकर आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर नहीं बन पाते. किशोर गोहिल का मानना है कि विकलांगों को अवसर प्रदान करना या उन पर निवेश करना घाटे का सौदा नहीं है बल्कि इससे देश की अर्थव्यवस्था भी मजबूत होगी.