छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिला के 3 ब्लॉक से आए 50 किसानों के दल को आज यहां स्थित राष्ट्रीय डेरी अनुसंधान संस्थान के डा. दलीप गोसाई, अध्यक्ष, कृषि विज्ञान केन्द्र ने संबोधित करते हुए कहा कि दुधारू प्शुओं की अच्छी सेहत और इनसे ज्यादा दूध की पैदावारी के लिये इस जिला के किसान गायों, भैंसों को सूखे भूसों में धान की पुआल को कूटटी कर अन्य प्शु आहारों के साथ मिलाकर खिलाएं जिससे उनको आर्थिक लाभ होगा। उन्होंने दल के सदस्यों को नस्ल सुधारने हेतु कृत्रिम गर्भाधान पर भी अपने विचार रखे।
पच्चास सदस्यीय दल के किसानों के साथ चर्चा करते हुए डा. गोसांई ने पाया कि इस जिला के मुख्यत किसानों के पास हरा चारा और धान की पुआल की कुटटी काटने हेतु चारा काटने की किसी के पास भी मशीन नहीं है जिसके चलते ये प्शुपालक किसान धान के फसलोवशेषों और अन्य हरे चारों को दुधारू प्शुओं के सामने खाने हेतु ऐसे ही डाल देते हैं। इस संदर्भ में डा. गोसांई ने बल देते हुए कहा कि कटे हुए चारे और भूसे को सुगमता से खाते और पचाते हैं दूधारू प्शु अतः प्शुपालक इस विधि को अवष्य अपनाएं।
डा. गोसांई ने चर्चा में यह ैभी पाया िकइस जिला के मुख्यतः हकिसान जो मक्का लगाते हैं वह मक्का के भूटटों को तोड़ने के उपरान्त मक्का के फसलोवशेषों को खेतों में ही फैंक देते हैं जबकि इसको चारे और साइलेज के रूप् में प्शुआंे की खिलाई हेतु अच्छे से लाभ कमा सकते हैं प्शुपालक परिवार। उन्होंने मक्का के फसलोवशेषों से साइलेज बनाने की विधि पर भी विस्तृत चर्चा की।
क्लवीर सिंह ने आए हुए दल को संस्थान की प्शुशाला का अवलोकन करवाया और भारतीय नस्लों में गीर, थारपारकर और साहीवाल और मुर्राह नस्ल की श्रेश्ठ भैंसों का अवलोकन कराया। उन्होंने हरा चारा लगाने हेतु इस जिला में मक्का की विभिन्न किस्में लगाने की सलाह दी।