तीन काले कानूनों को लेकर किसान आंदोलन दिन प्रतिदिन गहराता जा रहा है। अब तक सरकार के साथ 10 बैठक हो चुकी हैं। लेकिन दूर-दूर तक कोई समाधान निकलने के आसार नजर नहीं आ रहे हैं।
15 जनवरी की वार्ता भी बेनतीजा रही। अब 19 जनवरी को फिर से वार्ता के लिए समय निश्चित किया गया है। सरकार द्वारा हर बार बैठक में कोई समाधान का बिन्दु न लेकर आना इस बात का संकेत है कि सरकार तीनों काले कानूनों को लेकर चल रहे किसान आंदोलन के प्रति संवेदनशील नही है । यह बात भारतीय किसान यूनियन लोकशक्ति के हरयाणा प्रदेश प्रभारी महेन्द्र राठी ने कही।
अब तक 70 से ज्यादा किसान शहीद हो चुके हैं और सरकार की तरफ से शहीद हुए किसानों के लिए न तो कोई ब्यान आया है और न ही कोई सहानुभूति भरी बात आई है । सरकार के इस बेरुख रवैया से सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि सरकार किसान आंदोलन को लंबा खींचना चाहती है ताकि किसान खुद ब खुद अपना आंदोलन खत्म कर दें ।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित कमेटी को 2 महीने के अंदर अपनी रिपोर्ट पेश करनी है । लेकिन इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि यह कमेटी 2 महीने के अंदर -2 अपनी रिपोर्ट अवश्य दे देगी। संभावना इसका समय बढ़ने की रहेगी। सुप्रीम कोर्ट का फैंसला आने तक मामला लम्बा खींचता रहेगा । ऊपर से रबी की फसल – कटाई का समय आ जाएगा। किसान एक तरफ आंदोलनरत रहेगा और दूसरी ओर फसलों को काटने और संभालने का दबाव उस पर बन जाएगा ।
इसी संभावना को लेकर सरकार आंदोलन को लंबा खींचना चाहती है । ऐसे हालात में आंदोलन चला रहे संयुक्त किसान मोर्चा को सावधानी से कूटनीति बना कर कदम उठाने की जरूरत है । आंदोलन को लीड कर रहे किसान नेताओं को अपनी रणनीति इस तरह से बनानी होगी कि सरकार रबी फसल पकने के समय से पहले ही तीनों काले कानूनों को रद्द करने पर मजबूर हो जाए अन्यथा आंदोलन को फेल करने की सरकार अपनी कूटनीति में सफल हो जाएगी।
महेंद्र राठी ने सब संयुक्त किसान संगठनों और किसानों तथा किसानी से जुडे साथियों से अपील करते हुए कहा है कि आंदोलन को सफल बनाने के लिए फूंक फूंक कर कदम रखना होगा ताकि कम से कम समय में वांछित परिणाम प्राप्त हो सके।