आर्य समाज दयालपुरा में 15 अगस्त से 24 अगस्त तक मनाए जा रहे श्रावणी पर्व, वेद प्रचार सप्ताह एवं कृष्ण जन्माष्टमी तक दस दिवसीय कार्यक्रम के दूसरे दिन का प्रोग्र्राम बहुत ही आकर्षक एवं ज्ञानप्रद रहा। वैदिक सनातन धर्म की परम्परा अनुसार कार्यक्रम का प्रारम्भ पावन यज्ञ से हुआ। यज्ञ ब्रह्मा आचार्य वीरेन्द्र शास्त्री के मार्गदर्शन में पं. राजीव शर्मा ने यज्ञ सम्पन्न कराया तथा यज्ञमानों को आशीर्वाद दिया। आर्य जगत के प्रसिद्ध भजनोपदेशक पं. प्रताप आर्य ने ईश्वर स्तुति, प्रार्थना एवं उपासना के मधुर एवं सरस भजनों का कार्यक्रम रखा।
आर्य जगत के यशस्वी एवं प्रबुद्ध विद्वान आचार्य वीरेन्द्र शास्त्री ने अपने प्रवचन में कहा कि हम सब शिक्षार्थी हैं। मनुष्य को शिक्षा एवं विद्या दोनों दी जाती है। मनुष्य का प्रथम शिक्षक माता-पिता व स्कूल में अध्यापक होता है। पशु-पक्षियों को केवल शिक्षा दी जा सकती है, विद्या नहीं। शिक्षा से ही बच्चा विद्यार्थी बनता है। बिना शिक्षा के विद्या प्राप्त नहीं होती। आचार्य जी ने आगे कहा कि शिक्षा जब जीवन में उतर जाती है तब वह विद्या का रूप धारण कर लेती है। विद्यावान व्यक्ति ही सभ्य होता है। सभ्य उसे कहते हैं जिसे सभा में बैठने व बोलने का उचित ढंग आ जाए। सभ्य व्यक्ति कभी भी सभा में छोटे से छोटे व्यक्ति का भी अपमान नहीं करता।
सभ्य व्यक्ति ही समाज में विद्वता को प्राप्त हो विद्वान बन जाता है। स्वामी दयानन्द ने ठीक ही कहा है कि हमारी आत्मा पाप व पुण्य दोनों को जानती है। अत: विद्वान व्यक्ति कभी पाप नहीं करता। विद्वान ही धर्मात्मता को प्राप्त हो सकता है। धर्मात्मा व्यक्ति धर्म के मर्म को समझने लग जाता है। यह समझ लो कि धर्मात्मता का कोई बाहरी लेवल नहीं होता। बाहरी लेवल तो केवल दिखावा है।
आचार्य जी ने आगे कहा कि धर्मात्मता किससे आती है। स्वयं ही आचार्य जी ने उत्तर देते हुए कहा कि धर्मात्मता वेदों के ज्ञान से आती है, सत्यता एवं वैज्ञानिक चिंतन से आती है। धर्मात्मता प्राप्त करने के लिए हमें अपनी अंदर की आवाज को सुनना चाहिए। जब आत्मा में भय, शंका तथा लज्जा उत्पन्न होती है तो समझो वह हमारा किया गया कार्य अधर्म है। धर्मात्मा व्यक्ति ही जितेन्द्रीय बन सकता है और जितेन्द्रीय व्यक्ति ही ईश्वर के निकट होता है। अत: हमें चाहिए कि हम अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दे ताकि वह जीवन में महान वैज्ञानिक, श्रेष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता व धर्म के मर्म को खुद समझने वाला और समाज को समझाने वाला बन सके।
इस अवसर पर शहर के सभी आर्य समाजों के पदाधिकारी, कार्यकर्ता व ग्रामीण क्षेत्र से बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे। समाज के प्रधान विजय आर्य ने उपस्थित विशाल सत्संग का अभिनन्दन एवं आभार प्रकट किया।
जारीकर्ता : बलबीर आर्य