अंतरराष्ट्रीय बाजार में हमारे बासमती की धाक जमे। किसी भी देश में इस पर अंगुली ना उठे। इसके लिए एग्रीकल्चर प्रोसेस्ड फूड प्रोडक्ट एक्सपोर्ट डेवलपमेंट अथॉरिटी (एपिडा) और ऑल इंडिया राइस एक्सपोर्टर एसोसिएशन ने पहल की है। विज्ञानियों के दल गांव-गांव पहुंचकर किसानों को बासमती धान तैयार करने के तरीके बताएंगे।
विज्ञानी बताएंगे कि बासमती धान को कम से कम कीटनाशकों के प्रयोग से कैसे तैयार किया जा सकता है? ऑल इंडिया एक्सपोर्टर्स ने निर्णय लिया है कि मानकों पर खरा उतरने वाली बासमती धान को मार्केट से 100 रुपये प्रति क्विंटल अधिक भाव पर खरीदा जाएगा।
साथ ही जैविक धान को 300 रुपये प्रति क्विंटल अधिक भाव दिया जाएगा। इस प्रयास को केंद्र सरकार ने भी सराहा है। गत अप्रैल में हुई बैठक में यह निर्णय लिया गया।
केंद्रीय कृषि सचिव ने जताई थी चिता
अप्रैल माह में केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के सचिव ने धान उत्पादक राज्यों के कृषि सचिवों से वीडियो कान्फ्रेंसिग कर चिता जाहिर की थी। केंद्र सरकार ने इस बात को भी स्वीकार किया कि कीटनाशकों का ज्यादा प्रयोग हो रहा है। इससे चावल के निर्यात पर असर पड़ा है।
एक्सपोर्टरों ने दिए यह तीन सुझाव
1. बाजार में जो दवाएं बेची जाती हैं उस पर सुझाव अंकित होने चाहिए कि दवा किस बीमारी के लिए और इसका असर खेत पर कितने समय तक रहेगा।
2. कीटनाशक दवाओं की प्रति एकड़ पेकिग बनाई जाए, ताकि ज्यादा मात्रा में प्रयोग ना हो पाए। किसानों को इससे जानकारी होगी कि जो दवा का पैकेट उन्होंने खरीदा है वह एक एकड़ के लिए ही है।
3. हमने अपने स्तर पर दवाओं का जो छिड़काव कराया उस पर 3500 रुपये तक खर्च आया और जो किसान स्वयं कीटनाशकों का प्रयोग करते हैं वह पांच हजार से ज्यादा होता है। क्योंकि समय पर दवा नहीं डाली जाती, बाद में असर कम होता है तो बार-बार स्प्रे होते हैं।
कीटनाशकों ने घटाया रुतबा
फसलों में कीटनाशकों का अंधाधुंध प्रयोग बढ़ने से भारतीय बासमती की गुणवत्ता प्रभावित हुई है। इससे यूरोपीय और खाड़ी देशों में भारतीय बासमती की मांग में कमी आई है। भारत में बासमती की फसल में अंधाधुंध कीटनाशकों का प्रयोग किया जा रहा है। इस कारण भारतीय बासमती की गुणवत्ता कम होती जा रही है।
करनाल में तैयार होगा जैविक खेती का मॉडल
एफपीसी के अध्यक्ष डॉ. एसपी तोमर ने कहा कि बासमती धान को एक्सपोर्ट लायक बनाने के लिए हम करनाल में करीब 200 एकड़ का एक मॉडल तैयार कर रहे हैं, जो दूसरे किसानों के लिए प्रेरणा स्रोत होगा। इससे किसान सीख सकेंगे कि जहर मुक्त चावल कम खर्च में कैसे उगाया जा रहा है? उसकी कीमत अन्य चावल के मुकाबले 300 से 400 रुपये अधिक होगी।
सरकार को सुझाव दिए हैं। इस पर अमल का भरोसा मिला है। किसान पेस्टीसाइड ज्यादा इस्तेमाल ना करें इसके लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं। एपिडा के साथ मिलकर हम काम कर रहे हैं।
-विजय सेतिया,अध्यक्ष, आल इंडिया राइस मिल एक्सपोटर्स एसोसिएशन।